ख्वाइशें और रिश्ते
घर के
ही किसी एक कौने में,
किसी
मंदिर की तरह..
रिश्ते
बसते हैं..
पर
खुशबुएँ सारे घर में बसर करती हैं..
सुबह
और शाम का ही रिश्ता नहीं उनसे,
उसका
करम और उनकी यादें,
दिन
ढलने तक भी असर करती हैं ...
ख्वाइशें
और उम्र बढती ही जा रही हैं...
देखते
हैं किसे अपनी मंजिल पहले मिलती है..
रास्ते
हो या रिश्ते,
हो ही
जायेंगे मुकम्मल एक दिन,
पर चलते
हुए, पैरों से लिपटती ठोकरें खलती हैं....
सूर्यदीप
अंकित त्रिपाठी – 22082014