Thursday, August 21, 2014

KHWAISHEN AUR RISHTE (ख्वाइशें और रिश्ते) - सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी (Suryadeep Ankit Tripathi)


ख्वाइशें और रिश्ते

घर के ही किसी एक कौने में,
किसी मंदिर की तरह..
रिश्ते बसते हैं..
पर खुशबुएँ सारे घर में बसर करती हैं..
सुबह और शाम का ही रिश्ता नहीं उनसे,
उसका करम और उनकी यादें,
दिन ढलने तक भी असर करती हैं ...
ख्वाइशें और उम्र बढती ही जा रही हैं...
देखते हैं किसे अपनी मंजिल पहले मिलती है..
रास्ते हो या रिश्ते,
हो ही जायेंगे मुकम्मल एक दिन,
पर चलते हुए, पैरों से लिपटती ठोकरें खलती हैं....

सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी – 22082014

  


Tuesday, March 11, 2014

हे नारी .... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी

अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस के शुभ अवसर पर ....

जरूरी नहीं है सिमटकर रखना,
अपने आपको किसी कौने में, 
अपना विस्तार करो, 
अपना वजूद बनाओ | 
प्रकाश तो तुम फैलाती आई हो, 

जगाती आई हो लोगों को,
जरा देख लेने दो दुनियां को,
कि प्रकाश पुंज कहा है |
दुनियादारी यकीनन,
अनुभव के पेट की पैदाइश है,
पर पेट भरने के लिए,
पानी की नहीं, पाने की जरूरत है,
और पाने के लिए, पढने की,
तो उठो, पढ़ो और पढ़ाओ,
नए पाठ, नई सोच |
क्योंकि एक नारी, एक माँ से बेहतर,
कोई माध्यम नहीं है सीखने को,
तो बन जाओ सेतु,
इस दुनियां और आने वाली,
नई दुनियां के बीच |
उगा दो इतने सुलझे पौधे,
कि आने वाली फसलों पर,
कोई कीड़ों की तोहमत नहीं लगा सके,
और लहलहा सके हमेशा के लिए,
उगा सके अपने दामन में,
फिर से दिव्य फल,
जो एक नई सृष्टि का निर्माण करे,
फिर से, जो हो तुम्हारी तरह,
हे नारी !!
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी – ०८ मार्च, २०१४