Suryadeep Says - सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी

जो होना था वो ही हो रहा है ये सत्य है, परन्तु अर्धसत्य;परमात्मा ने ये जीवन आपको दिया है कुछ सार्थक कर गुजरने की लिए,यदि यही सोचकर मनुष्य उदासीन या कर्महीन हो जाये कि,जो होना है वो तो होकर ही रहेगा तो संसार और मनुष्यता का विस्तार रुक जायेगा.

Saturday, June 23, 2012

जलधर, जलभर बरसो .. (Jaldhar Jalbhar Barso) By Suryadeep Ankit Tripathi

जलधर, जलभर बरसो
बरसों मेघ, पयोधर बरसो (२)

बरसों जलद, जलत वसुधा सरि,
वात अनल सम, प्रखर प्रचुर रवि,
नभचर आकुल, व्याकुल हलधर,
घिर-घिर, घन घम बरसो !
जलधर, जलभर बरसो .........

हुए अधीर नर-नारी, सुता-सुत,
खग, मृग, पादप, पुष्प मरण मुख,
जल बिन मीन, न जीव बिन पानी,
अमृत रूप नीर, तुम बरसो !

 जलधर, जलभर बरसो .........                          

सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २२/०६/२०१२



Posted by सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी at 2:12 AM No comments:
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