Wednesday, October 20, 2010

स्मृति - ३ सितम्बर, २०१० (SMRITI)



स्मृति - ३ सितम्बर, २०१०

हर जख्म को भर देता है वक़्त, मरहम बनकर ,
जिंदगी यूँ ही चला करती है दोस्त, हमदम बनकर !!
खुद का साया जो बिछड़ जाता हैं, सर से अपने, 
उनका साया चला करता है ताउम्र, हमसफ़र बनकर !

मुझको मालुम था, मेरे जाने के बाद, क्या होगा, 
भीगीं होंगी तेरी आखें, तनहा, हर लम्हा होगा,
होगी माथे पे सिलवटें हरदम, 
लफ्ज निकलेंगे तेरे लब से, रुलाई बनकर !!

यूँ परेशां न हो, ये वक़्त भी टल जायेगा, 
लम्हा फिर खुशियों का, दामन मैं तेरे आएगा,
जिन्दगी तेरी संवर जाएगी फिर से, 
है भरोसा मुझे इस बात का, कब से तुझपर!!   

वक़्त कैसा भी हो, अपनों से गिला मत करना ,
दूरियां कैसी भी हों, अपनों से मिला तुम करना,
होना तकलीफ मैं शामिल उनके,
प्यार के रंग भी बिखराना, साथ मैं मिलकर !!

है भरोसा नहीं, साँसों की डोर कब टूटे, 
है भरोसा नहीं, अपनों का साथ कब छूटे,
वक़्त कुछ तो गुज़ार साथ मेरे,
मौत न जाने किस पल आयेगी, क़यामत बनकर !!  

सुर्यदीप "अंकित" ३०/०९/२०१० 

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