मुझे मिलकर देखो.....
लरजती शाम का घूँघट, उतार कर देखो,
कभी एक रात सही, नींद से उठकर देखो !!
ये हवाएं यूँ ही, खामोश बहा करतीं हैं,
इन हवाओं से कभी, बात तो कर कर देखो !!
चाँद सोया नहीं सदियों से, रात के डर से,
ओढ़ बादल की रजाई, उसे सुलाकर देखो !!
उगते सूरज से कभी पूछो, कि आज चलना है कहाँ,
साथ एक दिन तो कभी उसके, भटक कर देखो !!
मेरे चेहरे से नहीं होता है, इस दिल का बयाँ,
रात का तनहा कोई पल, संग रो कर देखो !!
दर्द का दिल से रहा साथ, यही फितरत है,
कभी एक पल तो रहो साथ, दवा बनकर देखो !!
कौन है ये जो चला आया है, कुछ यादें लेकर,
बैठो कुछ देर मेरे साथ, मुझे मिलकर देखो !!
सुर्यदीप "अंकित" त्रिपाठी - १२/०३/२०११
दिल से उपजी सुन्दर कविता !
ReplyDeleteDhanyavaad marmagya ji....
ReplyDeleteउगते सूरज से कभी पूछो, कि आज चलना है कहाँ,
ReplyDeleteसाथ एक दिन तो कभी उसके, भटक कर देखो !!
बहुत सुंदर बिम्ब .... गहन अभिव्यक्ति
दिल से उपजी सुन्दर कविता| धन्यवाद|
ReplyDeleteDhanyavaad Monikaji, the village...patali...
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