Friday, April 15, 2011

(IROME SHARMILA) इरोम शर्मीला के लिए...... सुर्यदीप का समर्थन...



इरोम शर्मीला के लिए...... सुर्यदीप का समर्थन... 
मणि धरा की इक मणि,
माणिक्य सम प्रखर घनी,
विरोध की है वो एक जनी,
कथा है वो जो नहीं सुनी,

मणि धरा पुकारती,
अस्मिता विलापती,
देह नोचती, खसोटती,
क्रूरता कचोटती,

जवान न वो जवान थे,
कुछ क्रूर, कुछ हैवान थे,
थे अस्मिता से खेलते,
कलियों को पग से रोंदते,

इरोम ये सब न सह सकी,
विरोध की थी मन लगी,
शपथ उसी पल ले चली,
माँ, अन्न, जल वो तज चली,

माँ अब न घर मैं आऊँगी,
तुझे न देख पाऊँगी,
है जब तलक ये अत्त्याचार,
अन्न जल न पाऊँगी,

दशक है एक गुजर गया,
न अन्न है, न जल पिया,
विरोध मुख प्रखर किया,
इरोम ने ये प्रण किया,

नहीं हैं कान राज़ के,
न आँख में ही पानी है,
हैं धड़कने कुछ पत्थरों सी,
शर्म तो आनी जानी है,

है दरख़्त दीमकों का घर,
पत्ते नहीं हैं शाख पर,
है राज पर कटे हैं पर,
बैठा उलूक शीर्ष पर,

क्या प्रश्न लाइलाज है,
कुछ शर्म या कुछ लाज है,
कुछ तो रहे भरम मेरा कि,
न गुलाम हम, ये स्वराज है.

अभी तो एक इरोम है,
जो बसी हर एक रोम है,
न अकेली, वो इक कौम है,
कुछ पल के लिए वो मौन है,
कुछ पल के लिए वो मौन है.......


सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १५/०४/२०११

4 comments:

  1. अच्छे है आपके विचार, ओरो के ब्लॉग को follow करके या कमेन्ट देकर उनका होसला बढाए ....

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  2. Sharmila erom ke samarthan me...ek anutha prayas....Badhai

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