Thursday, February 3, 2011

"धोखा किसको दिया ?" DKHOKHA KISKO DIYA..?


"धोखा किसको दिया ?" 

"गुड्डी बेटा, जल्दी से आओ, कॉलेज को देर हो रही है, बस निकल जाएगी" उस अधेड़ उम्र के शख्स ने बाहर खड़े अपने स्कूटर पर कपड़ा मारते हुए कहा
"अभी आई पापा, बस एक मिनट" गुड्डी ने मोबाइल का स्विच ऑफ करते हुए कहा, फिर जल्दी से किचन की और देखते हुए आवाज़ दी "माँ मैं जा रही हूँ"
"ठीक है, ध्यान से जाना" किचन से आवाज़ आई
उसने अपना बैग उठाया और बाहर की तरफ निकली, पापा ने तब तक स्कूटर चमका दिया था, बेटी को आता देख, किक मार कर स्कूटर स्टार्ट किया,, 
गुड्डी पीछे बैठी और बोली "चलो पापा" और...स्कूटर पास के ही लोकल बस स्टैंड की और दौड़ पड़ा. 
गुड्डी को स्टैंड पर छोड़ते हुए पापा बोले "ध्यान से जाना, बस आती ही होगी, आई कार्ड रखा है न?"
"हाँ, रखा है, कहते हुए वह स्टैंड की तरफ बढ़ चली, उसके पापा ने स्कूटर आगे बढ़ा दिया, उनको भी ऑफिस पहुँचने को देर हो रही थी.
वह स्टैंड पर खड़ी थी, उसने पर्स से स्कार्फ निकला और उससे पूरी तरह से मुंह ढक लिया,  तभी एक बाइक उसके सामने रुकी और उसमें बैठे लड़के आकाश ने कहा "क्या गुड्डी आज इतनी देर लगा दी, चलो अब बैठो, लेट हो रहा है"  गुड्डी जल्दी से बाइक पर बैठ गई और कस के आकाश को पकड़ लिया, बोली "हाँ यार, वो घर पर 
कुछ काम आ गया था, और फिर तुम बार बार SMS कर रहे थे, उसे पढने में भी लग गई थी"
बाइक चलती रही, कुछ देर में वो कॉलेज के सामने थे, आकाश बोला "शाम को मैं लेने आऊँगा, रोज़ के ही वक़्त, ठीक ?" वह मुस्कुराई और मुड़कर कॉलेज के तरफ चल दी,  आकाश ने भी बाइक को भगाया और पास ही के एक स्टैंड की तरफ बढ़ चला, स्टैंड पहुँचने पर उसने पास ही खड़ी लड़की की और देखते हुए कहा "सॉरी ज्योति, थोड़ी देर हो गई, यू नो, दी ट्रेफिक प्रॉब्लम, चलो मूवी का टाइम हो रहा है फिर ३ बजे मुझे कुछ काम है" वह लड़की मुस्कुराई और...बाइक में बैठ गई, दौनों चल पड़े. 
*****
गुड्डी बाइक से उतर कर कुछ कदम ही चली होगी की सामने उसे सुरेश दिखाई दिया, वो नज़दीक गई बोली "सॉरी सुरेश, तुम्हें इंतज़ार करना पड़ा, यू नो दी ट्रेफिक, और ऊपर से बस का सफ़र..हाउ बोरिंग" 
सुरेश ने उसकी ओर मुस्कुराते हुए कहा "कोई बात नहीं, अभी टाइम है, शो अभी शुरू नहीं हुआ है, बहुत अच्छी मूवी है, तुम्हें पसंद आएगी"    
"तो चलो, रुके क्यों हो" सुरेश मुस्कुराया ओर गुड्डी को साथ लेकर अपनी कार की तरफ बढ़ चला.
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शाम का वक़्त, यही कोई ४.३० बजे होंगे, आकाश कॉलेज के बाहर गुड्डी का इंतज़ार कर रहा था, कुछ देर में गुड्डी बाहर आई, सामने आकाश को देख कर उसके चेहरे पर चमक आ गई, तेज़ क़दमों से उसकी और चल पड़ी, नज़दीक पहुँच कर बोली, " सॉरी, तुम्हें वेट करना पड़ा, आज एक एक्स्ट्रा क्लास लेनी पड़ी" आकाश कुछ न बोला, मुस्कुराया और उसे बैठने का इशारा किया, वो बाइक पर बैठी आकाश ने बाइक तेज़ गति से दौड़ा दी. दौनों ही पास के रेस्टोरेंट में दाखिल हो गए, अन्दर काफी लोग मौजूद थे, आकाश ने गुड्डी का हाथ पकड़ा और पास ही बने एक केबिन की ओर बढ़ चले, गुड्डी ने अन्दर पहुँच कर आकाश से बोला, "यार जल्दी से आर्डर कर दो, २ बीअर का, पापा भी स्टैंड पर पहुँचने वाले होंगे, मुझे लेने" आकाश ने केबिन फोन से बारटेंडर को फोन कर २ बीअर का आर्डर दे दिया, फिर गुड्डी को खीच कर बाहों में जकड लिया.    
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वही अधेड़ आदमी अपने ऑफिस से निकल कर पार्किंग की तरफ बढे, स्कूटर स्टार्ट किया और गुड्डी को लेने स्टैंड की तरफ बढ़ चला, रास्ते में देखा की एक जगह बहुत भीड़ थी, उसने चलते हुए किसी आदमी को रोककर पुछा "क्या बात है भाई साहब, बड़ी भीड़ लगी है" उस आदमी ने कहा "भाई एक एक्सीडेंट हो गया है, एक लड़का ओर एक लड़की थे, ख़तम हो गए, बस उसी को देखने के लिए भीड़ उमड़ पड़ी है, एम्बुलेंस ओर पुलिस अभी तक आई नहीं है" कहकर वह आगे चल पड़ा. उस अधेड़ आदमी ने भी अपना स्कूटर स्टार्ट किया ओर स्टैंड की और चल पड़े, स्टैंड पहुँच कर देखा कि गुड्डी अभी तक नहीं आई थी, कुछ देर इंतज़ार किया, फिर अपने मोबाइल से गुड्डी का नंबर मिलाने लगा, दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं मिल रहा था., "हो सकता है...बस लेट हो गई होगी" उसने मन में सोचा ओर अपने स्कूटर को वहीँ स्टैंड कि साइड में खड़ा करके गुड्डी का इंतज़ार करने लगा. बीच-बीच में वह गुड्डी का फ़ोन भी ट्राई कर रहा था, लेकिन वही ढ़ाक के तीन पात. नो रिप्लाई, इस बीच २ बस भी आकर निकल चुकी थी, उन दौनों में गुड्डी नहीं थी.     
१० मिनट, १५ मिनट, आधा घंटा हो गया, लेकिन गुड्डी नहीं आई, सोचा "कहीं पहले ही घर तो नहीं पहुँच गई, मुझे घर चलकर देख लेना चाहिए" उसने स्कूटर स्टार्ट किया ओर घर कि तरफ भगा दिया, घर पहुंचकर उसे पता लगा कि वो घर पर भी नहीं पहुंची थी, अब दौनों चिंतित नज़र आने लगे. नाते-रिश्तेदारों को भी फ़ोन किया, गुड्डी वहां भी नहीं थी. 
रात के ८ बज चुके थे, अभी तक गुड्डी घर नहीं आई थी, माँ ने कहा "सुनो, मुझे तो बहुत चिंता हो रही है, जवान लड़की है, कहीं...कुछ ऊँच-नींच..."
"पार्वती, तुम भी कैसी बाते करती हो, चिंता मत करो, में जाकर जरा देखकर आता हूँ, नहीं मिलेगी तो फिर पुलिस में रिपोर्ट लिखानी पड़ेगी" कहकर वह उठकर स्कूटर की तरफ बढ़ चला.. इधर उधर भटकते हुए, गुड्डी को ढूंढते हुए उसे साढ़े नौ बज गए थे.
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सिटी पुलिस स्टेशन,
अभी-अभी सिटी पुलिस स्टेशन में एक एम्बुलेंस से दो डेड बॉडी उतारी गई थी, ओर पुलिस स्टेशन के पास ही मोर्ग लिखे रूम में रख दी गई थी. 
सब इस्पेक्टर हवालदार से पूछ रहा था  "संताराम, पोस्टमार्टम हो गया?
"जी साहेब, हो गया"
"कुछ पता लगा, कि ये दौनों कौन हैं, इनके घर वालों को खबर दी?"
"साहब, लड़के का तो अभी तक कोई पता नहीं चल पा रहा, चेहरा पूरी तरह बिगाड़ दिया है एक्सीडेंट ने दौनों का, हाँ लड़की के पर्स से एक 
मोबाइल मिला है, लेकिन अभी तक घर से कोन्टक्ट नहीं हो पाया, क्योकि अभी अभी बॉडी पोस्टमार्टम होकर आई हैं"
"ओर कुछ मिला पर्स से"
"हाँ, एक आई कार्ड मिला, किसी गुड्डी शर्मा का है, लेकिन उसमें घर का एड्रेस या फ़ोन न. नहीं है ". 
"जल्दी से मोबाइल में देखकर पता करो कि पापा, मम्मी या होम के नाम से न. फीड होगा"
संताराम ने मोबाइल के बटन दबाना शुरू कर दिया, पापा के नाम के आगे लिखे न. को वो डायल करने लगा..........
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