Tuesday, August 30, 2011

ईद मुबारक, आपको ईद मुबारक !! (id mubarak) by suryadeep ankit tripathi - 30-8-11


ईद मुबारक, आपको ईद मुबारक !!
ईद मुबारक, आपको ईद मुबारक !!
उसके करमों से जो दिखलाई दी वो दीद मुबारक !! 
ईद मुबारक, आपको ईद मुबारक !!
जिसके दर से कोई, इंसान खाली ना जाए !
आये मायूस मगर, भरके वो झोली जाये !!
पूरी जो होने लगी, आपकी मुरीद मुबारक !!
आपको ईद मुबारक !!
ईद मुबारक, आपको ईद मुबारक !!
अजब है उसका अबद नूर, है रोशन ये जहाँ !
है अर्श पर, है जमीं पर, है नहीं वो कहाँ !!
पाई जो उसके करम से, तुम्हें वो जीत मुबारक !!
आपको ईद मुबारक !!
ईद मुबारक, आपको ईद मुबारक !!
गई वो रात जहाँ जुल्म और, इक नफरत थी ! 
आँख में अश्क, हर इक जहन में अदावत थी !!
लेके आया जो मुहोब्बत वो, खुर्शीद मुबारक !! 
आपको ईद मुबारक !!
ईद मुबारक, आपको ईद मुबारक !!
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ३०/०८/२०११ 
शब्दार्थ -  मुरीद - आशा, इच्छा,    अबद - अनंतकाल, अंतहीन,  नूर - रौशनी, तेज़,  अर्श - आकाश, आसमान, 
खुर्शीद - सूर्य, सूरज 

Thursday, August 18, 2011

वो देख चमकता ध्रुव तारा !!! (wo dekh chamankta dhruv taara) - Suryadeep Ankit Tripathi


वो देख चमकता ध्रुव तारा !!!
है दूर नहीं अब सहर यार, वो देख चमकता ध्रुव तारा ! 
मत बंद पलक कर, ठहर जरा, वो देख जागता जग सारा !!
है तू जवान, जन-जन का मान, सीने को तान, बनके तूफ़ान !
कर तू बुलंद अपनी ये तान, सुनता है तुझको जग सारा !!

ये जोश नहीं थमने देना
ये रोष नहीं रुकने देना,
कर अपनी मुट्ठी बंद सभी, हो इंकलाब ही एक नारा !!
है दूर नहीं अब सहर यार, वो देख चमकता ध्रुव तारा !!!! 
.................. सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १९/०८/२०११ 

Tuesday, August 9, 2011

मेरा आसमान....


मेरा आसमान....
इस क्षितिज पर नहीं.....
इससे ऊपर.... बहुत ऊपर
है मेरा आसमान..

जहाँ...
कभी-कभी मेरे पंख 
मुझे उड़ाकर ले जाते हैं
और मैं वहीँ रह जाता हूँ...
कुछ पलों से मिलने
उनसे बातें करने.. 

और जहाँ....
सूर्य आँखों के सामने है...
सर पर नहीं....
चमकता है, पर चुभता नहीं...
जैसे पानी पर,. 
उगते सूरज की परछाई..
और बादल; श्वेत, निर्दोष,
नवजात की तरह

पंछी उड़ते हुए, कलरव करते
उन्हीं बादलों में कभी खोते-मिलते,
हवाएं...कुछ ठहरी, कुछ चंचल
पर तेज नहीं... निश्छल,
तारे अनगिनत टिमटिमाते
पर टूटते कोई नहीं,
शीतल चन्द्र बादलों से 
खेलता आँख मिचोली,
संग तारे उसके हमजोली...
वहीँ चाँद के किनारे बनी,
पुरानी सी झोपडी और,
वही एक बूढी औरत
जो तुम्हारे आसमान से,
चरखा चलाते दिखाई देती है.
और उसके पास बैठे,
वो ढेरों बच्चे, बड़े
सुनते कहानियाँ, किस्से
रोते - मुस्काते
देखते तारे कैसे बनते.
पर....
यहाँ...केवल मैं ही हूँ..
तुम क्यों नहीं...?
क्या ये तुम्हारा आसमान नहीं हो सकता…? 
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०९/०८/२०११ 

Saturday, August 6, 2011

बरसात की इक रात - (BARSAAT KI EK RAAT)


बरसात की इक रात - 
वो थी बरसात की, इक रात,
जहाँ हम-तुम थे....
होश जाने थे कहाँ -२
और कहाँ हम गुम थे !! वो थी बरसात की.....

आधे भीगे थे, आधे सूखे थे
जैसे अरमां कोई अधूरे से,,
खुद को सिमटाये, खुद में देर तलक -२,
थोड़े शर्माए, थोड़े चुप हम थे !! वो थी बरसात की...... 

थे सुलगते हुए अंगारे, कही थी रिमझिम
कहीं बूंदों की वो टप-टप, कहीं पायल छम-छम,
मेरी बाँहों में तू थी सिमटी हुई - २
बंद पलकें थी, होंठ गुमसुम थे !! वो थी बरसात की...... 

सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०६/०८/२०११ 

Wednesday, August 3, 2011

शायद... कभी मिलें हो उससे.... BY SURYADEEP ANKIT TRIPATHI


शायद... कभी मिलें हो उससे....

कैसा दिखता है,
क्या किसी पत्थर सा,
या किसी पेड़ सा,
या शायद टंगा होगा किसी कागज़ सा,
क्या उसके घर पर,
पांच वक़्त की अज़ान थी,
या फिर घंटियों की आवाज़ से,
पहाड़ों की चोटियाँ गुंजायमान थी,
कैसा लगा उसका चेहरा,
क्या किसी अबोध सा था,
या फिर चेहरे से उसके,
मानवता का बोध सा था....
उसकी रसोई देखी ?,
क्या वहां छप्पन भोग थे,
ये फिर थी सिर्फ दाल-रोटी,
क्या वो गरीब था, असहाय था,
या फिर चेहरे से उसके टपकती,
अमीरी का दर्प सुखाय था,
क्या वो सचमुच भगवान् था....
या रखा तुमने कोई आइना सरे बाज़ार था....
किंचित......


सुर्यदीप