Friday, September 30, 2011

गीत – (जुदाई) आँगन में अपने प्रेम का….. (aangan main apne prem ka) BY-SURYADEEP ANKIT TRIPATHI


गीत – (जुदाई) आँगन में अपने प्रेम का…..
आँगन में अपने प्रेम का, तुम दीप जलाये रखना जी
आऊँगा इक दिन लौट के, तुम प्रीत जगाये रखना जी
आँगन में अपने.... 

मंजिल मेरी दूर बहुत है, चलना मुझको है तनहा बहुत
साथ तुम मेरे, चल न सकोगी, (राह में बिखरे हैं कांटे बहुत) -२ 
यादें तेरी मैं साथ रखूंगा, दिल में जैसे धड़कन जी,
आँगन में अपने.... 

आज जुदाई कहने भर की, कल से यादों की परछाईयां,   
आज ये महफ़िल साथ है मेरे, (कल से मैं और तन्हाईयाँ) - २
कितना ही ग़म तुमको सताए, आँख नहीं नम करना जी..
आँगन में अपने.... 


पंछी, बादल और हवाएं, इनका तो कोई ठौर नहीं
सन्देश तेरा जो मुझको बताये , (चंदा है कोई और नहीं) - २
लिख कर प्रेम की पाती अपनी, चंदा से भिजवाना जी

आँगन में अपने प्रेम का, तुम दीप जलाये रखना जी
आऊँगा इक दिन लौट के, तुम प्रीत जगाये रखना जी
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २३/०९/२०११ 

Wednesday, September 21, 2011

मेरा शहर......Mera Shahar (Suryadeep Ankit Tripathi)


मेरा शहर......   
कोई टूटी हुई पतंग जैसे,
मन है फिरता कोई मतंग जैसे !!
अजनबी शहर है, अनजान से चेहरे हैं यहाँ,
दूर मंजिल है कहीं, रास्ते हों तंग जैसे !!.... 
कोई टूटी हुई....
जिसको देखो यहाँ, सब भागते नजर आते
आज फिर छिड़ गई हो, कोई जंग जैसे !! 
कोई टूटी हुई....
चेहरे मायूस, लिए दर्द की सलवट कोई
जिंदगी घर से चली ओढ़ के घुटन जैसे !! 
कोई टूटी हुई....
दर्द का रिश्ता यहाँ दूर तक, नज़र में नहीं,
जिस्म का रिश्ता बसा हर जहन जैसे !!
कोई टूटी हुई....
फूल कागज़ के उगाते हैं, शहर के गुलशन
खुशबुएँ रोज़ ही बिकती हैं, एक बदन जैसे !!
कोई टूटी हुई पतंग जैसे,
मन है फिरता कोई मतंग जैसे !!
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी -२१/०९/२०११  

Monday, September 19, 2011

ग़रीब और ग़रीबी (Gareeb aur Gareebi) Suryadeep Ankit Tripathi


ग़रीब और ग़रीबी 
दिन रखे गिरवी, जमानत, उसकी साँसे होंगी,
खुद ही ढोया जिसे ताउम्र, वो गरीबी होगी !!
भूख के पेट को भरने को, न मयस्सर रोटी,
आज शायद उसे पानी की, जरूरत होगी !!
उम्र उम्मीद की बढती, उसकी गिरती जाती
कब्र अरमानों की उसने हर रोज़ बनाई होगी !!
रख के सिरहाने कोई बात, कई दर्द वो लेटा,
नींद शायद ही उसे बरसों से आई होगी !!
रोज़ बहता ही रहा घर, कभी आँसू कभी बारिश
जाने क्या सोच के छत उसने बनाई होगी !! 
वो गया कब इस जहाँ से किसे मालूम यहाँ,
रोई जो लाश पे आखिर वो भी तन्हाई होगी !! 
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १९/०९/२०११ 

Friday, September 9, 2011

जय साईं राम !! (Jai Sai Raam)

जय साईं राम !!
ॐ जय साईं राम, जय साईं राम,
जय साईं राम, जय साईं राम, 
१. नाम तेरा जो मन से गाये, 
   बिगड़ी बात साईं बन जाए, 
   इन चरणों में मैंने पाए,  तीनों लोक, चारों धाम... साईं राम 
   जय साईं राम, जय साईं राम  !!
. राह भटकता प्राणी क्यों है, 
    साईं चरण में, जीवन ये है,
    छोड़ दे चिंता साईं पर ही,  साईं पर हर काम... साईं राम
    जय साईं राम, जय साईं राम !! 
३. कर सत्कर्म, न कर बैमानी,
    दुनियाँ ये है आनी जानी,
    साथ तेरे धन ना जाएगा,   ना कोई कुल, ना ग्राम...साईं राम
    जय साईं राम, जय साईं राम !! 
४. घर को तज, जंगल क्यों भाजे,
    साईं तेरे घर ही विराजे, 
    छोड़ ये भ्रम ये आडम्बर, प्रेम से कर तू ध्यान...साईं राम
    जय साईं राम, जय साईं राम !! 
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ३०/०६/२०११ 

आज फिर इक गुनाह कर बैठे .. (Aaj Fir ek Gunah Kar Baithe ) Suryadeep Ankit Tripathi


आज फिर इक गुनाह कर बैठे !
अपने ही दिल से, सवाल कर बैठे !! 
दिल ने समझाया था, उल्फत न कर
दिल लगाकर कमाल कर बैठे !!
अपने ही दिल से …….
इक तो वैसे ही ज़माने में, रंजिशें कम न थी 
दोस्ती दुश्मनों से की,  बबाल कर बैठे !! 
अपने ही दिल से …….
उनका मिलना तो एक ख्वाब ही था,  
जाने हम क्या-क्या, ख्याल कर बैठे !!
अपने ही दिल से …….
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०९/०९/२०११ 


Thursday, September 8, 2011

चंद सवालात !!! (Chand Sawalaat) Suryadeep Ankit Tripathi - 08/09/2011


                           चंद सवालात !!!

क्यूँ सुलगता है वतन, और दहलती है जमीं
जर्रे-जर्रे पे क़यामत हैं, सुकूं पल को नहीं !!
टुकड़े अरमानों के, जज्बातों के, बिखरे-बिखरे,
कई मासूम सवालात, यु हीं बिखरे हैं यहीं !!
मेरे मालिक तेरी दुनियाँ, कभी ऐसी तो न थी,
क्या यही है, तेरी दुनियाँ, या भरम है ये कहीं !!
घर से निकले तो, चले खौफ का दामन पकडे
दिन ये दहशत में ही गुजरे, क्या ये, जीना हैं कहीं !!
क्या सवालों की भी कोई उम्र हुआ करती है,  
या जवाबों से रहनुमाओं की कोई, दुश्मनी तो नहीं !!
     सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०८/०९/२०११