Wednesday, October 27, 2010

जुदाई और तन्हाई !!! (ZUDAI AUR TANHAI)


खुश ना होगी, मुझसे बिछड़ कर, ये मुझको मालूम है, 
याद मुझे तो करती होगी, ये मुझको मालूम है,
वो नदिया का तीर है तनहा, है वीरां गुल और गुलशन, 
सारा आलम चुप सा होगा, ये मुझको मालूम है,
ख़त वो पुराने पढ़तीं होगी, तस्वीरों को ढूढती होंगी,     
सोच में मेरे ही गुम होगी, ये मुझको मालूम है,
पलकें होंगी भीगी-भीगी, होगा बोझिल-बोझिल मन,
होंठ सिले से होंगे हरदम, ये मुझको मालूम है,
ऊपर वाले ने क्यों लिख दी, ये बैचेनी, तन्हाई
शिकवा उससे करती होगी,  ये मुझको मालूम है,
आइना जब देखती होंगी, होगी कुछ हैरानी सी,
अनजानी सी सूरत होगी, ये मुझको मालूम है,  
खुश ना होगी, मुझसे बिछड़ कर, ये मुझको मालूम है, 
याद मुझे तो करती होगी, ये मुझको मालूम है,
सुर्यदीप "अंकित" - २७/१०/२०१० 

Wednesday, October 20, 2010

भूख !!! (BHOOKH)

भूख !!!
१. बिखर रही है जमीं, बिखर रहा है चमन !
    नहीं हैं फूलों से चेहरे, नहीं है तन पे वसन !!
    है पेट पीठ से टकराता हुआ, है प्यास लब पे, धंसे हुए हैं नयन !
    बिखर रही है जमीं, बिखर रहा है चमन !
२. है दर्द दिल मैं, कई सिलवटें हैं माथे पर, 
    नहीं है जान बदन मैं, गए हैं थक से कदम !!
    बिखर रही है जमीं, बिखर रहा है चमन !
३. उसे ही बेच दिया माँ ने, जो था आँख का तारा !
    नहीं था उसके सिवा कोई, जहाँ मैं प्यारा !!
    थी फिक्र उसकी भी उसको, नहीं थी भूख सहन !!
    बिखर रही है जमीं, बिखर रहा है चमन !
४. रसूख वालो जरा, इनपे भी इनायत कर दो !
    है इनका हक़ इन्हें, थोड़ी सी मुहब्बत दे दो !!
    किसी को फिक्र नहीं है, नहीं किसी को रहम !!!
    बिखर रही है जमीं, बिखर रहा है चमन !
    सुर्यदीप "अंकित" - २४/०९/२०१० 



स्मृति - ३ सितम्बर, २०१० (SMRITI)



स्मृति - ३ सितम्बर, २०१०

हर जख्म को भर देता है वक़्त, मरहम बनकर ,
जिंदगी यूँ ही चला करती है दोस्त, हमदम बनकर !!
खुद का साया जो बिछड़ जाता हैं, सर से अपने, 
उनका साया चला करता है ताउम्र, हमसफ़र बनकर !

मुझको मालुम था, मेरे जाने के बाद, क्या होगा, 
भीगीं होंगी तेरी आखें, तनहा, हर लम्हा होगा,
होगी माथे पे सिलवटें हरदम, 
लफ्ज निकलेंगे तेरे लब से, रुलाई बनकर !!

यूँ परेशां न हो, ये वक़्त भी टल जायेगा, 
लम्हा फिर खुशियों का, दामन मैं तेरे आएगा,
जिन्दगी तेरी संवर जाएगी फिर से, 
है भरोसा मुझे इस बात का, कब से तुझपर!!   

वक़्त कैसा भी हो, अपनों से गिला मत करना ,
दूरियां कैसी भी हों, अपनों से मिला तुम करना,
होना तकलीफ मैं शामिल उनके,
प्यार के रंग भी बिखराना, साथ मैं मिलकर !!

है भरोसा नहीं, साँसों की डोर कब टूटे, 
है भरोसा नहीं, अपनों का साथ कब छूटे,
वक़्त कुछ तो गुज़ार साथ मेरे,
मौत न जाने किस पल आयेगी, क़यामत बनकर !!  

सुर्यदीप "अंकित" ३०/०९/२०१० 

जय श्री कृष्णा !!! (JAI SHREE KRISHNA)

जय श्री राधेजय, जय श्री कृष्णा , सांवली सूरत मन अति मोहना 
मुरली अधर पर सदा बिराजे, गोपियों के संग रास वो राचे !
सुन्दर मुकुट भाल पे सोहे, वैजन्ती माल कंठन पर साजे !!!
मस्तक तिलक, केश मोर पंख, स्वर्ण कुंडल, मधुर अति बाना !!   
संग ग्वाल वन धेनु चरावत, भांति भांति के खेल रचावत !
ग्वालिन-गोपी को माखन चोर के, आप खावे और ग्वाल चखावत !!
धन्य है मात यशोदा, जो जन्म लियो कान्हा तोरे अंगना !! 
Suryadeep Ankit on Monday, September 27, 2010 at 2:10pm

याद.........(YAAD......)

याद 
आज फिर बदली ग़मों की छाई है ; क्या करें याद तेरी, लौट के फिर आई है !!
आज फिर बदली ग़मों की छाई है!!!
तू न आई कभी लौट के, दर पर मेरे;  
तू न आई कभी लौट के, दर पर मेरे!!
जाने किस बात का शिकवा, क्या रुसवाई है!!
क्या करें याद तेरी, लौट के फिर आई है !!
रोज सजती थीं, तमन्नाओं की महफ़िल मेरे दिल मैं, 
रोज सजती थीं, तमन्नाओं की महफ़िल मेरे दिल मैं,
तू जो बिछड़ी मेरे घर से, हुई तन्हाई हैं !!
क्या करें याद तेरी, लौट के फिर आई है !!
जख्म क्या-क्या नहीं खाए हैं, दिल ने तेरी ख़ातिर, 
जख्म क्या-क्या नहीं खाए हैं, दिल ने तेरी ख़ातिर,
हर एक सांस मैं एक आह, और आँख मैं नरमाई है !!
क्या करें याद तेरी, लौट के फिर आई है !!
आज फिर बदली ग़मों की छाई है ; क्या करें याद तेरी, लौट के फिर आई है !!
सुर्यदीप "अंकित" - १८/०८/२०१० 

Tuesday, October 19, 2010

"उसकी याद"

"उसकी याद" 
था ये दिन कुछ उदास सा, ये रात भी उदास है !
समझ न पाए ये दिल मेरा, कि, बात क्या ये ख़ास है !!
न दिन को था सुकूं मुझे, न रात को सुकून है !!
न जाने कैसा सर पे मेरे, सवार ये जूनून है !!
हैं वक़्त क्यों बदल रहा, करवटें ये नयी नयी !
क्या अब भी, उसके आने का इसको इंतज़ार है !!
तस्सवुर में रहे हर वक़्त, उसका, वो हँसीं सा चेहरा !
गुमां होता है कि हर एक शै में हरदम, वो ही रहता है !! 
उसी के लफ्ज़ को सुनना, उसी के गीत को गाना !
यही एक काम है हर पल, यही दिन रात रहता है !!
हैं देखे कितने ही चेहरे, और रंगों से सज़ी महफ़िल !!
लगे चेहरा वही अच्छा जो, उसके आँचल मैं रहता है !!
मैं जाकर पूछता रहता हूँ, अपने घर का पता सबसे !! 
कदम ये चल पड़े बेबस, जहाँ दिलदार रहता है !!
उसी की है नवाजिस ये, है उसकी याद का जादू !
ग़मों की बारिशों मैं भी, जो मुझको जिन्दा रखता है !!
Suryadeep Ankit on Monday, September 27, 2010 at 2:13pm

यौवन !!!

यौवन !!!
ओस की बूंदों से, भीगा हुआ फूल है ये,
हरित सी मुग्ध धरा पे, रक्त वर्ण, खिला फूल है ये, 
पंखुड़ियों मैं है रस, है हरित वर्ण अभी इन पत्तियों मैं भी,
खड़ा है एकटक, बेसहारे, इन झंझावातों मैं भी, 
हवा का कोई भी रूप, इसे मिटा नहीं सकता, 
तेज बारिश का भी डर  इसे सता नहीं सकता, 
है ये यौवन रुपी पुष्प, इसने अभी जहाँ नहीं देखा, 
क्या होती है आंधी, और क्या है पतझड़, ये नहीं सोचा, 
इसे तो बस मदमस्त हो, गुलशन मैं खिलने दो, 
रंग चारों तरफ खिलखिलाहट के भरने दो..

भगत सिंह

भगत सिंह हाँ , भगत सिंह हाँ, भगत सिंह था वो, 
जन्म लिया था इस धरती पर, अमर ही होने को,, 
वर्ष बारह का था वो बालक, जब जलियावाला कांड हुआ , 
मन पर उसके इस हरकत का, असर बहुत ही तेज हुआ ,,
छोड़ा उसने बचपन उस क्षण, इन्कलाब की ओर हुआ, 
आजादी था, सपना उसका, रस्ता उसने वही चुना,,
दल में जाकर मिल गया जिसमें, आजाद, गुरु, सुखदेव भी थे ,
अंग्रेजों को मार भगाना, मनसूबे उनके भी थे,, 
लाला जी की असमय मौत ने, खून उनका खौलाया था, 
सबने मिलकर हिंसा को मजबूरी में अपनाया था,
अत्याचारी सैंडर्स को, मौत के घाट उतारना था
लाला जी की मौत का बदला, उन तीनों को लेना था ,,
अत्याचारी के घर जाकर, गोली सीने पर दाग दिया,
रही कसर को राजगुरु ने, सर पे गोली मार किया ,,
हिदुस्तानी नहीं हैं कायर, गोरों को ये बताना था ,
बारूदों से खेलते आये, इनको ये जाताना था,,
आखिर वो भी एक दिन आया, भगत सिंह मन भर आया ,,
बटुकेश्वर को साथ ले उसने, हमले का विचार बनाया ,,
जिंदाबाद ए इन्कलाब, का नारा उसने बुलंद किया ,
अस्सेम्बली मैं बम को फ़ेंक कर, जय जय जय  जय हिंद किया,
वतन पे मर मिटने का, खुद से ही इकरार किया,
लेकर  उनको गए जेल मैं, फांसी को तैयार किया, 
भगतसिंह, सुखदेव, राजगुरु ने, फन्दा पहले चूम लिया, 
हँसते हँसते अपनी जान को, देश पे बलिदान किया ,
इन्कलाब हैं जिंदाबाद, ये देश को एक पैगाम दिया,
इन्कलाब हैं जिंदाबाद, ये देश को एक पैगाम दिया, 
इन्कलाब हैं जिंदाबाद, ये देश को एक पैगाम दिया, 
तीनों के अंतिम शब्द - 
"दिल से निकलेगी न मरकर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी खुस्बू ए वतन आएगी "
इन्कलाब जिंदाबाद "
सुर्यदीप "अंकित" - २८/०९/२०१०


बिखरी जुल्फों को तेरी.........

बिखरी जुल्फों को तेरी, आज संवारूँ कैसे,
यूँ दिखाई दी है, माथे पे शिकन, 
वो शिकन रुख से, तेरे आज, हटाऊँ कैसे !!
सुर्ख लब हैं, या हैं कोई कमल,
इन गुलों को, अपने गुलशन में, खिलाऊँ कैसे !!
हैं नशा सा तुम्हारी आखों में, 
तेरी पलकों को, मेरा जाम, बनाऊं कैसे !!
जिसके चेहरे से, है रोशन ये जहाँ, 
वो उजाला मेरी, तकदीर में लाऊँ कैसे !!
दिल तो करता है, मोहोब्बत तुझसे, 
हाले-दिल अपना, सुनाऊँ तो, सुनाऊँ कैसे !!
लगने लगती है, हर एक साँस भी, अधूरी सी, 
तेरी साँसों को, मेरी साँस,  बनाऊँ कैसे !!
ख़त्म सी होने लगी हैं, धुन मेरे गीतों से,
तेरी धड़कन मेरे गीतों में, सजाऊँ कैसे !!
है अँधेरा कई लम्हों से, मेरे घर में यूँ ही, 
नाम की तेरे शमा, घर में, जलाऊं कैसे !!
बिखरी जुल्फों को तेरी, आज संवारूँ कैसे,
सुर्यदीप "अंकित" - १२/१०/२०१० 


हे मुरलीधर, कृष्ण, मनोहर !!!

हे मुरलीधर, कृष्ण, मनोहर- २,   
सुध हमरी, अब लीजो जी,,
दरस को तरस, बरस बीत गहि हों - २,
नैनन दरस, दिखाओ जी,,  
हे मुरलीधर, कृष्ण, मनोहर, सुध हमरी, अब लीजो जी,,

हे यदु नंदन, मधुर, सुलोचन  -२,
दुःख निवारण, भव-भय तारण,
दुष्ट संहारन, मुनि मन रंजन - २,
आयो शरण, तिहारी जी,, 
हे मुरलीधर, कृष्ण, मनोहर, सुध हमरी, अब लीजो जी,,  

हे दामोदर, गोवर्धन धर - २, 
हे अनंत, तुम एक अगोचर, 
हे नटनागर, हे करुणाकर -२, 
भक्तन काज, संवांरो जी
हे मुरलीधर, कृष्ण, मनोहर, सुध हमरी, अब लीजो जी

हे गोविन्दम. हे गोपाला - 2
माखनचोर हे, हे नंदलाला, 
संकटमोचन, दीन कृपाला -२
बेगी द्वार, पधारो जी 
हे मुरलीधर, कृष्ण, मनोहर, सुध हमरी, अब लीजो जी

सुर्यदीप "Ankit " - १४/१०/२०१० 

Monday, October 11, 2010

"आदमी"

"आदमी" 
शहर की दौड़ में, दौड़ते रहे उम्र भर - उम्र भर !
भागते, भटकते रहे यूँ ही दर-ब-दर और दर-ब-दर !!
भूले वो यारों का साथ, भूले वो बचकानी सी बात !
भूल बैठे पतंगों के वो पेंच, भूले वो चरखी पकड़ना ! 
लूटना पतंगों को, दोस्तों से लड़ना-झगड़ना !!
भूले वो स्कूल से भागकर आना, गलियों में किसी छोर पे कंचे खेलना !
भूले वो चुपके से मिठाई खाना, माँ के बुलाने पर भी न घर को आना !!!
बस... अब तो बस सिर्फ याद ही हैं बाकी....क्योंकि ...
शहर की दौड़ में, दौड़ते रहे हैं अब तक...
मंजिलों का तो पता नहीं, रास्ता साफ़ नजर में नहीं घर तक!!!
सुबह से शाम हुई जाती है, और रात भी ढल जाती है!
कोई ख़ुशी नहीं देती मेरे दरवाज़े पे दस्तक !!!
निकल जाता हूँ मैं, घर से इसी उम्मीद में, इमारतों की तरफ !
कि कौनसी है वो ईमारत, जो मेरे नसीब में नहीं लिखी गयी अब तक !! 
ढूंढता हूँ, भटकता हूँ, और फिर दर-ब-दर , दर-ब-दर!!!
शहर की दौड़ में, दौड़ता ही रहा उम्र भर - उम्र भर. 
सुर्यदीप " अंकित" - २३/०८/२०१० 

बचपन !! ( BACHPAN )

चंचल- निर्मल, निच्छल, कोमल, धवल सा ये बचपन,
पंखेरू की चहचहाट सा, सुप्रभात उज्जवल,,
चंचल- निर्मल, निच्छल, कोमल, धवल सा ये बचपन,
नैनो को हर क्षण मटकाता, तनिक कहीं रुक नहीं ये पाता,
रंग शरारत के दिखलाता, धमकाओ तो है रो पड़ता, 
माता के आँचल छुप  जाता, सहम के ये बचपन!! 
चंचल- निर्मल, निच्छल, कोमल, धवल सा ये बचपन,
फूलों सा नाजुक होता है, गंगा सा निर्मल होता है, 
पत्तों पर वो ओस की जैसा, हरा भरा उपवन होता है, 
आँख का तारा, सबका दुलारा, प्यारा सा बचपन!!
चंचल- निर्मल, निच्छल, कोमल, धवल सा ये बचपन,
प्रश्नों की बौछार लगाता, बार-बार उनको दोहराता,   
समझ न पाता, पर प्रयास  हर पल  वो  करता ,,
प्रश्नों के उत्तर पाने को, जिज्ञासु बचपन !!
चंचल- निर्मल, निच्छल, कोमल, धवल सा ये बचपन,
मित्रों के संग खेल ये खेले, भिन्न-भिन्न भांति के, 
रूप रंग का भेद न जाने, न मजहब, जाती के, 
हंसी, ठिठोली, बैर भाव दिखलाता ये बचपन !! 
चंचल- निर्मल, निच्छल, कोमल, धवल सा ये बचपन!


सुर्यदीप "अंकित"