Friday, May 20, 2011

वो हिमाला है...

है अटल -अचल
सम धवल-नवल, 
है श्रेष्ठ शिखर, वो हिमाला है.....
चंचल - सरिता चहुँ ओर बहे,
फल-फूल से शोभित माला है,  
है हिंद के सिर का ताज, 
नित गर्व करे हर जियाला है, 
प्रकृति की अनुपम भेंट मिली, 
मन आनंदित, हिय हर्षाला है,  
है ज्ञान अलोकिक बिखरा हुआ, 
सत-संग की एक पाठशाला है,
है शिव का घर, निकट अम्बर,
है श्रेष्ठ शिखर, वो हिमाला है.....
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २१/०५/२०११ 

Saturday, May 14, 2011

विदाई गीत ... BIDAAI GEET..BY SURYADEEP ANKIT TRIPATHI



















विदाई गीत ....

माई मोरी माई....हो....
माई मोरी माई.....
कैसी जग ने रीत ये बनाई रे
काहे अब से हुई मैं परायी रे
माई रे.... काहे भेजे मोहे परदेश

बाबुल का अंगना, छूटा मोसे जाए ...
छूटा मोसे जाये, मेरा गाँव रे...
संग सहेली छूटी, घर की देहली छूटी,  
छूटी मोसे ममता की छाँव रे...
माई रे... काहे भेजे मोहे परदेश.......                                                         

किससे कहूँगी मैं, बातें मेरे मन की
कैसे मैं सहूंगी, कोई घाव रे..... 
बाबुल का हाथ न होगा
होगा न कोई, भैया सा साथ रे
माई रे.. काहे भेजे मोहे परदेश....... 
नाही भेजो मोहे परदेश........

पेड़ के वो झूले पूछेगाँव के वो मेले पूछे
पूछे कुँए की वो मुंडेर रे...
खेत की हरियाली पूछे, फूल हर, हर डाली पूछे
लौटेगी तू फिर कितने देर से...
देदो कोई जाके सन्देश रे...
बिटिया तो जाये परदेश रे...
माई रे....ओ माई रे...काहे भेजे मोहे परदेश.....                              
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी  14/05/2011