Thursday, March 31, 2011

Tanhaai.... kuch Chaand..si...


विस्तृत गगन में,
अक्सर, 
उस अधूरे चाँद को
देखा है मैंने, 
तनहा सा कभी, 
कभी सितारों के साथ
कभी बादलों की ओट में, 
कभी कुछ धुंधला सा, 
कभी पूरा, उजला सा,
कितने ही सितारों के बीच ,
कितने ही नजारों के बीच, 
है वो कब से यूँ ही 
तनहा तनहा 
वो एक हमसफ़र सा 
लगता है मेरी तनहाइयों का 
बरसों से यादों को संभाले हुए
यूँ ही, हर तरफ
बिखरे सपनों को संजोये हुए, 
आस में कि कभी तो पूरे होंगे, 
वो सपने 
जिन्हें अपने सीने में कहीं
दबा रखा है, 
दाग़ सीने में उसने भी सजा रखे हैं
गहरे, काले, न मिटने वाले, 
मेरी तरह, वो भी रोज निकलता है,
टहलता है, घूमता है
आवारा सा, 
और फिर, हो जाता है गुम
उन्हीं गहराइयों में
जहाँ वो है और उसकी तन्हाईयाँ हैं..
अब में उससे नहीं पूछता 
कि चाँद, तू अकेला क्यों है
क्योंकि अब तन्हाई
उसे भी भाने  लगी है, 
यादों को संजोये, उसी में खुश है वो,
वो चाँद अब मेरी तरह तनहा नहीं है
वो चाँद अब मेरी तरह तनहा नहीं है.......
suryadeep ankit tripathi - 01/04/2011

Tuesday, March 22, 2011

Suryadeep Says: "जापान त्रासदी पर सुर्यदीप के श्रद्धासुमन"

Suryadeep Says: "जापान त्रासदी पर सुर्यदीप के श्रद्धासुमन": "'जापान त्रासदी पर सुर्यदीप के श्रद्धासुमन'कंप वो प्रचंड था,कृति का इक प्रपंच था,धरा का हिय विदार था,जल का इक प्रहार था,पुकार थी, ..."

Friday, March 18, 2011

"जापान त्रासदी पर सुर्यदीप के श्रद्धासुमन"


"जापान त्रासदी पर सुर्यदीप के श्रद्धासुमन"
कंप वो प्रचंड था,
कृति का इक प्रपंच था,
धरा का हिय विदार था,
जल का इक प्रहार था,
पुकार थी, चीत्कार थी,
धरा पे हाहाकार थी,
कदम-कदम पे खंड था,
ईश नेत्र  बंद था,
वृक्ष थे पड़े हुए,
फल-फूल सब झडे हुए,
बंद सारी आस थी,
दफ़न हुई कुछ साँस थी,
कुछ का नहीं था कुछ पता,
कुछ ढूंढते खुद का पता,
कोई लाल माँ से दूर था,
कहीं मिट चूका सिंदूर था,
कोई गोद लाश सर्द थी,
बस दर्द की ही गर्द थी....
"सूर्य" था बुझा हुआ,
"दीप" न जला हुआ,
जलमग्न सारा क्षेत्र था,
जल में डूबा हर नेत्र था,
रंग एक था बेरंग था,
मानव वो खंड-खंड था,
कंप वो प्रचंड था,
कृति का इक प्रपंच था,
"सुर्यदीप के श्रद्धासुमन" - १८/०३/२०११

Saturday, March 12, 2011

मुझे मिलकर देखो..... MUJHSE MILKAR DEKHO....


मुझे मिलकर देखो.....
लरजती शाम का घूँघट, उतार कर देखो,
कभी एक रात सही, नींद से उठकर देखो !!
ये हवाएं यूँ ही, खामोश बहा करतीं हैं, 
इन हवाओं से कभी, बात तो कर कर देखो !!
चाँद सोया नहीं सदियों से, रात के डर से, 
ओढ़ बादल की रजाई, उसे सुलाकर देखो !!  
उगते सूरज से कभी पूछो, कि आज चलना है कहाँ, 
साथ एक दिन तो कभी उसके, भटक कर देखो !! 
मेरे चेहरे से नहीं होता है, इस दिल का बयाँ,
रात का तनहा कोई पल, संग रो कर देखो !! 
दर्द का दिल से रहा साथ, यही फितरत है, 
कभी एक पल तो रहो साथ, दवा बनकर देखो !!
कौन है ये जो चला आया है, कुछ यादें लेकर,
बैठो कुछ देर मेरे साथ, मुझे मिलकर देखो !! 
सुर्यदीप "अंकित" त्रिपाठी - १२/०३/२०११ 

Tuesday, March 8, 2011

होली आई रे !!! HOLI AAI RE.......

((कोरस - पंचम द्रुत चाल))
"जमुना के तट पर, लपट-झपट कर, 
रंग-गुलाल बरस, घट-घट पर, 
आगे-आगे दौड़े राधा, 
पीछे-पीछे कान्हा झटपट....
फागुन रास रचाए रासी,
संग गोपियाँ बहुत ही नटखट..... " (अंत पंचम द्रुत चाल)
(राधा)

मोहे छेड़ो नहीं नंदलाल, बहाने होली के
रंग डारो नहीं मोपे लाल, बहाने होली के !! मोहे छेड़ो.....
भीज गई मोरी, अंगियां चोली,
हाँ, भीज गई मोरी अंगिया चोली,  
सखियाँ चिढ़ावे, कर-कर ठिठोली
(कर-कर ठिठोली) (कोरस), 
भर पानीहोss भर पानीपिचकारी नहीं मार, बहाने होली के !! मोहे छेड़ो.....
(कृष्ण)
मैं हूँ बिरज का एक दीवाना
मैं ना जानू कोई बहाना, (कोई बहाना-() (कोरस
प्रीत की रीत है मिल जुल रहना
जिस रंग वो डूबे, (रंग खुद वो रंगना) ()
डालू तोपे () मैं रंग हज़ार, बहाने होली के.... 
मैं तो छेड़ूँ तुझे, सरे बाज़ार, बहाने होली के !! मोहे छेड़ो.....
(राधा)
धोखे से मोहे घर से बुलाया,
गोरे मुख पे, (श्याम रंग लगाया) () ,, (कोरस
रंग डाला मुझे, अपने ही रंग में
रंग तोरा बसे (मोरे अंग-अंग में), ()
मन तेरा बसालूं प्यार, बहाने होली के...
(कोरस)
वाके छेड़ो नहीं नंदलाल, बहाने होली के
रंग डारो नहीं वापे लाल, बहाने होली के !!
सुर्यदीप "अंकित" त्रिपाठी - ०८/०३/२०११