आज फूल खिल उठे, भंवरों ने है गीत गाया,
शरमा गई है, उपवन कि कलियाँ, महबूब है मेरा आया....
उसकी चंचल, शोख अदाएं, जैसे सागर का पानी,
पानी में भी जो आग लगादे, ऐसी उसकी जवानी,
आन बसे हैं, मन में मेरे, मन को है भरमाया.......
शरमा गई है, उपवन कि कलियाँ, महबूब है मेरा आया....
होंठ हैं उसके फूलों से कोमल, चाल है बलखाती,
बोली है उसकी इतनी मधुर कि, प्रेम का रस बरसाती,
नील गगन से आँखों में उसके, प्यार उमड़ हो आया.....
शरमा गई है, उपवन कि कलियाँ, महबूब है मेरा आया....
कितनी ही तारीफ़ करे कोई, थकती नहीं ये जुबां,
मुझको मेरा प्यार मिला है, रोशन हो उठा जहाँ,
मेरे सूने गुलशन को जिसने, खुशबू से महकाया,
शरमा गई है, उपवन कि कलियाँ, महबूब है मेरा आया....
सुर्यदीप "अंकित" - २६/०२/१९९४