Saturday, October 29, 2011

एक समंदर...(ek samandar)


रेत के सुन्दर घरोंधे,
कुछ सपनों से मेरे,
कुछ क़दमों की छाप,
इसी गीली रेत पर उकेरी,
जाती हुई.....
पर लौटती नहीं..
सूरज को भिगोता समंदर, 
नहलाता, पिघलाता उस तरफ,
और इस तरफ,
मैं जलता, सुलगता, 
पैरों को समंदर में समेटता,
चलता बेसुध,
उन क़दमों की छापों पर, 
जो जाती हैं, लौटती नहीं..... 
suryadeep ankit tripathi - 28/10/11

Friday, October 28, 2011

शुभ दीपावली !!! by SURYADEEP ANKIT TRIPATHI

है दीपावली का शुभ अवसर,
तू मिटा तिमिर, एक दीप जला, 
कर रोशन अपने साथ ये जग, 
शुभ दीप जला, शुभ दीप जला,

है निशा अमावस अंधियारी, 
नहीं चंद्र, गगन करता फेरी,   
कर अंधियारे का मुख रोशन, 
शुभ दीप जला, शुभ दीप जला,

क्यूँ बैठा मन को मार मनुज, 
क्यूँ बैठा हिम्मत हार मनुज, 
चल उठ कर कदम से कदम मिला,
शुभ दीप जला, शुभ दीप जला, 

सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी -* २४/१०/२०११