रेत के सुन्दर घरोंधे,
कुछ सपनों से मेरे,
कुछ क़दमों की छाप,
इसी गीली रेत पर उकेरी,
जाती हुई.....
पर लौटती नहीं..
सूरज को भिगोता समंदर,
नहलाता, पिघलाता उस तरफ,
और इस तरफ,
मैं जलता, सुलगता,
पैरों को समंदर में समेटता,
चलता बेसुध,
उन क़दमों की छापों पर,
जो जाती हैं, लौटती नहीं.....
suryadeep ankit tripathi - 28/10/11