Friday, August 10, 2012

SHRI KRISHNA JANMASHTHMI - गावत हैं आज बधाई

पावन पर्व श्री कृष्ण जन्माष्ठमी की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !!

गावत हैं आज बधाई, गोकुल में लोग-लुगाई,
भू-तारन को, भू-पालन को, जन्म लियो कन्हाई !!
गावत हैं आज बधाई .....

मात यशोदा पुलकित-पुलकित, नन्द जु धन्य कहाई,
जन मन उपवन, हर्ष गगन वन, करत हैं देव बढ़ाई !!
गावत है आज बधाई....

जेहि पद रेनू न पावत दुर्लभ, तप धुनी जोग लगाईं,
वही चरण गोकुल धन करही, नन्द जु भुवन समाई !!
गावत है आज बधाई...

कृष्ण वदन और अधर मधुर-मधु, नयनन प्रीत लखाई,
सूर्यदीप करी प्रान निछावर, बलि-बलि रूपहूँ जाई !!
गावत है आज बधाई .... 

सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १०/०8/२०१२

Saturday, July 21, 2012

खरीद लाया हूँ, सपने सुहाने, कल के लिए..by Suryadeep Ankit Tripathi


खरीद लाया हूँ, सपने सुहाने, कल के लिए....
यही उम्मीद है जीने को, इस पल के लिए....
चंद सिक्के संभाल रक्खे थे....
बाँध कर कुछ रुमाल रक्खे थे....
ढूँढने साथ ले आया, सवाल, हल के लिए... 
यही उम्मीद है जीने को, इस पल के लिए....

माँ ने कुछ रोटियां बनायीं थी..
साथ मीठी सी, एक खटाई भी. ..
रोज़ देखूं उन्हें जी भर, रखूँ मैं, कल के लिए... 
यही उम्मीद है जीने को, इस पल के लिए....

नींद में सोते हुए बच्चों को, जी भर देखा...
घर के कौने में किसी, चेहरे को, छूकर देखा...
जिंदगी छोड़ मैं आया, वहाँ बदल के लिए.....
यही उम्मीद है जीने को, इस पल के लिए....

मेरे गीतों मैं दर्द बसता है
ग़म मेरे साथ-साथ चलता है...
खोई खुशियों को याद करता हूँ...
रात मैं अब तमाम जगता हूँ....
मैं तरसता हूँ मेरे गीत और, ग़ज़ल के लिए..
खरीद लाया हूँ, सपने सुहाने, कल के लिए....
यही उम्मीद है जीने को, इस पल के लिए.....
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २०/०७/२०१२ 

Saturday, May 26, 2012

Prem Samarpan (प्रेम समर्पण) - by Suryadeep Ankit Tripathi 24/05/2012


(लफ्ज़ तुम्हारे...और गीत मेरे...)
~~~
प्रेम समर्पण~~~
रहा तिमिर घिरा चहुँ और प्रिये, 
एक दीप जला, तम हो प्रज्जल ! 
एक क्षण अब रुक, दे दीप बुझा, 
मुख दर्शन दे, कर मन उज्जवल !! 
मन की तृष्णा, इक मरू-भूमि 
तेरे काले गेसू आस मेरी, 
अधरों का रस अब, कुछ तो बरस, 
वर्षा से बुझे न प्यास मेरी !! 
मधुमास मिलन, मधु तेरे नयन, 
तुम लिप्त कस्तूरी गात प्रिये, 
मैं मधुप विचरता आकुल-व्याकुल, 
रस-प्रेम तरसता आज प्रिये !! 
तुम नख से शिख तक , एक कला ,
विचलित उर का आभास प्रिये ,
ये मधुर समर्पण भावों का ,
है दृष्टिपटल पर आज प्रिये !! 
मै प्रतिक्षण एक प्रतीक्षा में ,
एक याचक सा, अधिकार लिए,
क्षणभंगुर से इस जीवन का ,
ये सत्य करो, स्वीकार प्रिये !! .....
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २४/०५/२०१२

Saturday, April 21, 2012

प्रिय मित्रो,
मेरी ये नई ग़ज़ल उस इंसान, उस झूठी ताकत, रसूख या देश के उस प्रभुत्व को एक सन्देश है ! हो सकता है कुछ लोग सहमत हो....कुछ नहीं... पर शायद अब वक़्त हो चला है कि "समां बदलना चाहिए"... "शुभ"

कितने जख्मों से भरा है, तेरा ये हाथ रकीब,
छोड़ खंज़र तेरे हाथों का, बस एक फूल तू रख !!
बेगुनाहों पे रहम कर, तू रहमदिल बन जा (२),
यूँ गुनाहों से सरोबार, झुका सर तू न रख !! .......
           छोड़ खंज़र तेरे हाथों का, बस एक फूल तू रख !!

क़त्ल कितने ही किये तूने, कितने घर लूटे (२),
दौलते-ख़ून न रख घर में, सुकून-चैन तू रख !!
           छोड़ खंज़र तेरे हाथों का, बस एक फूल तू रख !!
राह जितने भी थे पत्थर, वो तूने हटवाये (२),
किसी पत्थर से तो डर, पूज, उसे दिल में तू रख !!
            छोड़ खंज़र तेरे हाथों का, बस एक फूल तू रख !!
यूँ न हो की तेरे इस हाथ में, इक हाथ न हो,
तू चला जाता अकेला हो, कोई साथ न हो,
आखरी वक़्त है, दो-चार करम साथ तू रख !!
छोड़ खंज़र तेरे हाथों का, बस एक फूल तू रख !!
यूँ गुनाहों से सरोबार, झुका सर तू न रख !! ....... सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी-२१/०४/१२

Thursday, April 12, 2012

एक लम्हा.... कुछ अपना सा.... .. By Suryadeep Ankit Tripathi


एक लम्हा.... कुछ अपना सा....

क्या यही सच था...
सच ही होगा...
बहुत कड़वा था...स्वाद में..
पर वो कहाँ है ....
जो कि गुजर गया...
तेरे-मेरे इस विवाद में....

वो लम्हा कहीं पे, बिखरा होगा
शीशे सा टूट-टूट के..
जरा ढूंढो उसे तुम, रोता होगा
किसी कौने में, फूट-फूट के...
तुम उसको अपनालो...
अपने गले लगा लो... 
रखलो सहेजे उसको, अपनी किसी ...याद में....

देखो तकिये के नीचे...सोया तो नहीं है...
ख्वाबों के जैसेखोया तो नहीं है.....
कोई करवट कहीं पे, उसने ली तो नहीं है..
कोई सिलवट चादर की, उसने सिली तो नहीं हैं..
उजले आँगन में देखो..
धुंधली शामों में देखो,
या छुपा होगा वो, रात की किसी.. बात में...
पर वो कहाँ है ....
जो कि गुजर गया...
तेरे-मेरे इस विवाद में....

सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १२/०४/२०१२  (This post could be seen at Facebook - https://www.facebook.com/photo.php?fbid=337264552996987&set=a.107118109344967.4473.100001403349849&type=3&theater


Tuesday, March 13, 2012

मैं न मंदिर में बसा हूँ……. By Suryadeep Ankit Tripathi


मैं न मंदिर में बसा हूँ…….
मैं न मंदिर में बसा हूँ, न किसी भी गिरजा में, 
न ही मस्जिद, न ही बानी, न कदा-औ-कज़ा में,
न किसी मय के पयाले में, मधुशाला में, 
न किताबों में रहा करता हूँ, न कोई शाला में,
मुझसे मिलना हो तो इस क़ल्ब में रहम रखना,
रखना होंठों पे हंसी, आँख को कुछ नम रखना, 
किसी मासूम की मुस्कान को, बनाये रखना,
इन अंधेरों में भी इक आग, जलाये रखना, 
और कुछ भी मैं न चाहूँगा, न दरकार करूँगा, 
तू जहाँ चाहेगा, आऊँगा, न इनकार करूँगा, 
मैं रहूँगा वहीँ चाहेगा, जहाँ तू रखना, 
तेरी हर बात सुनूँगा, रहूँगा तेरी रज़ा में......
मैं न मंदिर में बसा हूँ……….
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी.... १२/०३/२०१२......... This post is available at Facebook also - https://www.facebook.com/photo.php?fbid=319331004790342&set=a.107118109344967.4473.100001403349849&type=3&theater

Thursday, February 23, 2012

कुछ खोयी सी वो बादल जैसी.... By Suryadeep Ankit Tripathi


कुछ खोयी सी वो बादल जैसी,
कुछ वो पवन सी लहराती !!
धीर बसा मन समंदर जैसा,
चंचल लहरों सी अठलाती !!

नैनों में मधुरस पल-पल छलके,
होठों पे शब्दों के बोल हलके..
हर पल फूलों सी मुस्काती !!...
पत्तों पे बिखरी शबनम जैसी,

रातो की रानी पूनम जैसी,
सितारों सी वो जगमगाती !!
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १३/०२/२०१२

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चाँद क्यूँ रोज़ कभी, एक सा रहता है नहीं..... BY Suryadeep Ankit Tripathi

चाँद क्यूँ रोज़ कभी, एक सा रहता है नहीं....
क्यूँ ये सूरज भी, सरेआम, यूँ टहलता है...
किसके आँचल से हैं बंधे तारे..
क्यूँ ये आकाश, कई सदियों से, यूँ तकता है...
क्यूँ निकलती है सुबह, रात की पनाहों से...
क्यूँ भरी धुप को ले साथ , ये दिन चलता है...

क्यूँ ये पेड़ों की पत्तियां कोमल,
क्यूँ पहाड़ों की छातियाँ पत्थर,
कैसे खुशबू हवा में है बाकी,
कोई बादल, क्यूँ यूँ बरसता है....

क्यूँ है रेतों का, समंदर सूखा,
क्यूँ है नदियों लगे नहाई सी,
कैसे खेतों से भूख पलती है,
कैसे फूलों का घर महकता है..

कैसे जीवन नया कोई चहके,
क्यूँ बिछड़ जाए, कोई संग चलके,
क्यूँ ये इंसान चलता रहता है,
क्यूँ समय न एक पल ठहरता है...

क्यूँ मेरी आँख में रहें सपने,
क्यूँ मेरे साथ में हैं मेरे अपने,
क्या कोई है जो इनका है मालिक,
है अगर तो वो, क्यूँ न दिखता है.....

सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २२/०२/२०१२

Tuesday, February 7, 2012

जाने क्यूँ आप……… (Jaane Kyun Aaap..) By Suryadeep Ankit Tripathi


जाने क्यूँ आप………
जाने क्यूँ आप, हर एक बात, दिल पे लेते हो...
खामखाँ आप मेरी बात, पे रो देते हो !!
बात खुशियों की हो या, हो कोई ग़म की ही खबर
आप हर वक्त यूँ ही, आँख को नम रखते हो !! 
खामखाँ आप...........
उन सवालों की, कोई उम्र नहीं है फिर भी
क्यूँ जवाबों को, ज़माने की नज़र करते हो !!  
खामखाँ आप...........
तेरी रुखसत, मेरी साँसों में, कमी करती है,
बात ये जानते हो, फिर भी क्यूँ, चल देते हो  !! 
खामखाँ आप..........
जाने क्यूँ आप, हर एक बात, दिल पे लेते हो,
खामखाँ आप मेरी बात, पे रो देते हो !!..
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी  - ०६/०२/२०१२

Wednesday, January 18, 2012

मौसम तेरी यादों का,,,,सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १६/१/२०१२


कोई भटका हुआ पल, फिर से लौट आया है,
फिर से मौसम तेरी यादों का, चला आया है !!

मेरे सिरहाने रखे ख्वाबों में, फिर है हलचल,
फिर जगाने को कोई ख्वाब, चला आया है !!

हमसफ़र दूर तलक बनके रहा, वो आदिल,
मिलने आसिम से वो क्यूँ कर के , चला आया है !!

आदिल - सच्चा, नेक
आसिम - दोषी, पापी
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १६/१/२०१२
 

स्त्री.... १७ जन. २०१२

स्त्री....
अब भी.... देहरी पर बैठी...
यही सोचती है..
मैं इसके भीतर सुरक्षित हूँ...
या इसके बाहर...
और पुरुष....
न जाने अब तक...
ऐसी कितनी ही
देहरियाँ लांघ चुका है...... सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १७ जन. २०१२

Monday, January 9, 2012

"स्‍त्री होकर सवाल करती है..." लोकार्पण रविवार, 8 जनवरी 2012

फेसबुक पर मौजूद 127 नवोदित-प्रतिष्ठित रचनाकारों की स्‍त्री विषयक कविताओं के संकलन "स्‍त्री होकर सवाल करती है....!" का लोकार्पण रविवार, 8 जनवरी 2012 को कविता समय कार्यक्रम के कविता पाठ सत्र में हिन्‍दी की मूर्धन्‍य साहित्‍यकार सुश्री अनामिका और डॉ. सविता सिंह ने किया.
एक ऐतिहासिक पहल....  :)

Thursday, January 5, 2012

"सुप्रभात सुखकर" BY SURYADEEP ANKIT TRIPATHI

"सुप्रभात सुखकर"                     BY SURYADEEP ANKIT TRIPATHI
दिनकर फिर से लेकर आया...
ये सुप्रभात सुखकर !
हुआ तिमिर नाश, जगी जन की आस,
खिले कुसुम यूँ मुस्काकर !! ये सुप्रभात सुखकर !!
मानव ने आलस छोड़ा, हलधर भी ले हल दौड़ा,
गाये-गीत पंछी यूँ चहककर ! ये सुप्रभात सुखकर !!
हुई शंख-ध्वनी मंदिर में, आयत गूंजी मस्जिद में,
करे स्तुति वो गिरिजाघर !! ये सुप्रभात सुखकर !!
करे ध्यान गुरुका गुरुद्वारा, गुरु ज्ञान बांटे जग में सारा,
बने हम महँ पढ़-लिखकर ! ये सुप्रभात सुखकर !!
दिनकर फिर से लेकर आया...ये सुप्रभात सुखकर !
०६/०१/२०१२ सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी