यही उम्मीद है जीने को, इस पल के लिए....
चंद सिक्के संभाल रक्खे थे....
बाँध कर कुछ रुमाल रक्खे थे....
ढूँढने साथ ले आया, सवाल, हल के लिए...
यही उम्मीद है जीने को, इस पल के लिए....
माँ ने कुछ रोटियां बनायीं थी..
साथ मीठी सी, एक खटाई भी.
..
रोज़ देखूं उन्हें जी भर, रखूँ मैं, कल के
लिए...
यही उम्मीद है जीने को, इस पल के लिए....
नींद में सोते हुए बच्चों को, जी भर देखा...
घर के कौने में किसी, चेहरे को, छूकर देखा...
जिंदगी छोड़ मैं आया, वहाँ बदल के
लिए.....
यही उम्मीद है जीने को, इस पल के लिए....
मेरे गीतों मैं दर्द बसता है,
ग़म मेरे साथ-साथ चलता है...
खोई खुशियों को याद करता हूँ...
रात मैं अब तमाम जगता हूँ....
मैं तरसता हूँ मेरे गीत और, ग़ज़ल के लिए..
खरीद लाया हूँ, सपने सुहाने, कल के लिए....
यही उम्मीद है जीने को, इस पल के लिए.....
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २०/०७/२०१२
उम्मीद की बेहतरीन अभिवयक्ति.....
ReplyDeleteDhanyavaad.... Sushma... ji... :)
Deleteबहुत सुन्दर......
ReplyDeleteआस से भरी रचना.......
अनु
Thanks... Anu... :)
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