भूमि पुत्र !!!
है धन्य कृषक, वो भूमिपुत्र, धन अन्न का जिसने उगाया है,
भूख से व्याकुल मानव को,
दे अन्न उसे हर्षाया है !!
ये किस्मत है, ये हिम्मत है,
ये शक्ति है, इस भूमि की,
यहाँ खून पसीना एक समझ,
पानी सा इसने बहाया है !!
ये मेहनत का फल है भाई,
ये प्रकृति की है करुनाई,
जल सींच-सींच जो बंजर भी,
हो हरित यहाँ लहराया है !!
है वो निर्धन, पर जन का धन,
धान के रूप उगाया है,
खुद दो रोटी को है भूखा,
भर पेट देश को खिलाया है !!
है धन्य लाल वो माटी का,
जिससे कि हिंद का लाल पले,
एक ले बन्दूक है डटा हुआ,
एक ने हल काँधे उठाया है !!
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १७/०६/२०११
भूमि पुत्र के लिए लिखी कविता उम्दा .. हल और बन्दुक ..कृषक और सैनिक .. बहुत खूब..
ReplyDeleteDhanyvaad, Nutan ji.. Aaapke sundar vaktavya ke liye..aabhaar.
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