सुन- सुन री सखी पावस आयो !!
झर-झर झंकृत, हो मेघ अलंकृत,
धरा विचर, पावस आयो !!
करि अट्टहास जलद, जल भरी-भरी,
धरा सुधा बरसायो !!
सुन- सुन री सखी पावस आयो......
हुई धन्य धरा, धन धान सुखद,
मन देख हरित मुस्कायो,
खग-वृंद गगन कलरव सुन्दर,
कर नृत्य मयूर उछावो !!
सुन- सुन री सखी पावस आयो......
पुलक कुसुम, सुन गुन-गुन गुंजन,
भ्रमर पराग नहायो,
लता पाश कर वृक्ष आलिंगन,
फल-फूल नेह उपजायो !!
सुन- सुन री सखी पावस आयो......
ये मधुर ऋतू, पावस पावन
मन प्रेम अगन, प्रिय शीत पवन
हिय बैठ हिंडोले डोल रहा,
कछु ठौर नाहीं ठहरावो !!
सुन- सुन री सखी पावस आयो......
मन पिया रमण उकसायो...
सुन- सुन री सखी पावस आयो......
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २३/०७/२०११
भई वाह मजा आ गया पढ़कर....
ReplyDeleteDhanyavaad... Veena.ji..
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