तुझको कसम है माँ के लाल ....
(पाकिस्तान की दगाबाजी और उद्दंडता पर)
खंड-खंड कर वो खंड, प्रचंड वार एक कर,
रक्त क्यूँ न खौलता, दशा ये देश, देख कर !!
भुजंग वो उद्दंड वो, कलंक है धरा पे वो,
है मृत्युदंड इक विकल्प, प्रयत्न सारे देख कर !!
(अहिंसा-गाँधी) नहीं हिंसा (भगत सिंह) पर
है अस्त्र-शस्त्र का ये युग, इक काठ वो दंड नहीं,
दंड से भले हुए है सभ्य, इक उद्दंड नहीं !!
शस्त्र आज थाम ले, सम सिंह इक हुँकार कर,
नोच-नोच बोटियाँ, तज जल, तू रक्त पान कर !!
(साम-दाम और भेद के निष्फल होने पर)
नहीं है मान शास्त्र का, तो शस्त्र पर यकीन कर,
जता दे रोष, कर के घोष, अंबर-धरा तू एक कर !!
तू एक कर जन की आवाज़, देर एक भी पल न कर,
मिटा दे दुश्मनी जहाँ से, दुश्मनों का नाश कर !!
(सुस्त एवं अदूरदर्शित राजनीति के लिए)
ये खून हैं इस देश का, नहीं हैं जल जो बहा करे,
राजनीति का ये दंड, निर्दोष क्यों सहा करें !!
बदल दे अंध राज को, तू फिर से राम-राज कर,
भवि हो तेरा तेजमय, तू कल करे सो आज कर !!
(नौजवान (सिपाही) एवम गर्म खून के लिए)
सूर्य से तू लेके ज्वाल, ज्वार सिंध का झपट,
कर श्रृंग सा अटल तू मन, तूफ़ान से तू ले लिपट !!
जलेगा एक दीप पर, असंख्य दीप सा प्रखर,
संवरेगा मेरा देश फिर, युवक गया जो एक निखर !!
युवक गया जो एक निखर.....
तुझको कसम है माँ के लाल, तू फिर से एक काम कर,
दे मान फिर से देश का, तू शीश इसके नाम कर !!
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २१/०७/२०११
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