हाथ पे हाथ कोई दे दे.......
जन वेदना..बनी मूक श्राप
उत्साह कोई लाकर दे दे
कविता के आखर धार नहीं..
हथियार अब हाथ कोई दे दे..!!
भारी जेबों का बोझ सहन,
कब तक ये देह करे ये मन..
खाली हाथों का अब रण ये नहीं,
पत्थर अब हाथ कोई दे दे !!
गांधी की आँख भी रोती है,
नहीं तन पर उनके धोती है,
नहीं तिलक कोई मरने पाए..
लाठी अब हाथ कोई दे दे !!
निर्धन का दुःख भी है बेचा,
भरे पेट भला किसने सोचा,
पिचके पेटों को कुछ तो मिले..
भर-भर अब हाथ कोई दे दे...!!
मासूमों को अब खेल नहीं,
अब उनसे खिलाया जाता है,
अब छीन के बरतन हाथों से...
पुस्तक अब हाथ कोई दे दे !!
सोचो अब उसकी उम्र नहीं,
पर अब भी वो क्यूँ लड़ता है,
ये देश हो फिर से उठ के खड़ा.
अब हाथ पे हाथ कोई दे दे !!
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी -१७ दिसंबर २०११
जन वेदना..बनी मूक श्राप
उत्साह कोई लाकर दे दे
कविता के आखर धार नहीं..
हथियार अब हाथ कोई दे दे..!!
भारी जेबों का बोझ सहन,
कब तक ये देह करे ये मन..
खाली हाथों का अब रण ये नहीं,
पत्थर अब हाथ कोई दे दे !!
गांधी की आँख भी रोती है,
नहीं तन पर उनके धोती है,
नहीं तिलक कोई मरने पाए..
लाठी अब हाथ कोई दे दे !!
निर्धन का दुःख भी है बेचा,
भरे पेट भला किसने सोचा,
पिचके पेटों को कुछ तो मिले..
भर-भर अब हाथ कोई दे दे...!!
मासूमों को अब खेल नहीं,
अब उनसे खिलाया जाता है,
अब छीन के बरतन हाथों से...
पुस्तक अब हाथ कोई दे दे !!
सोचो अब उसकी उम्र नहीं,
पर अब भी वो क्यूँ लड़ता है,
ये देश हो फिर से उठ के खड़ा.
अब हाथ पे हाथ कोई दे दे !!
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी -१७ दिसंबर २०११
बहुत सुंदर मन के भाव ...
ReplyDeleteDhanyavaad.... sushma...ji...:)
ReplyDeleteवाह त्रिपाठी जी, आप तो काफी अच्छा लिखते है ,पहली बात आप के ब्लॉग पर आना हुआ,रचना और ब्लॉग दोनों हो बेहतरीन है......
ReplyDeleteDhanyavaad...Avanti ji... :)
ReplyDeleteYe aapka badappan hai.... jo aapne mujhe is layak samjha....