स्त्री....
अब भी.... देहरी पर बैठी...
यही सोचती है..
मैं इसके भीतर सुरक्षित हूँ...
या इसके बाहर...
और पुरुष....
न जाने अब तक...
ऐसी कितनी ही
देहरियाँ लांघ चुका है...... सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १७ जन. २०१२
अब भी.... देहरी पर बैठी...
यही सोचती है..
मैं इसके भीतर सुरक्षित हूँ...
या इसके बाहर...
और पुरुष....
न जाने अब तक...
ऐसी कितनी ही
देहरियाँ लांघ चुका है...... सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १७ जन. २०१२
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