Thursday, February 23, 2012

चाँद क्यूँ रोज़ कभी, एक सा रहता है नहीं..... BY Suryadeep Ankit Tripathi

चाँद क्यूँ रोज़ कभी, एक सा रहता है नहीं....
क्यूँ ये सूरज भी, सरेआम, यूँ टहलता है...
किसके आँचल से हैं बंधे तारे..
क्यूँ ये आकाश, कई सदियों से, यूँ तकता है...
क्यूँ निकलती है सुबह, रात की पनाहों से...
क्यूँ भरी धुप को ले साथ , ये दिन चलता है...

क्यूँ ये पेड़ों की पत्तियां कोमल,
क्यूँ पहाड़ों की छातियाँ पत्थर,
कैसे खुशबू हवा में है बाकी,
कोई बादल, क्यूँ यूँ बरसता है....

क्यूँ है रेतों का, समंदर सूखा,
क्यूँ है नदियों लगे नहाई सी,
कैसे खेतों से भूख पलती है,
कैसे फूलों का घर महकता है..

कैसे जीवन नया कोई चहके,
क्यूँ बिछड़ जाए, कोई संग चलके,
क्यूँ ये इंसान चलता रहता है,
क्यूँ समय न एक पल ठहरता है...

क्यूँ मेरी आँख में रहें सपने,
क्यूँ मेरे साथ में हैं मेरे अपने,
क्या कोई है जो इनका है मालिक,
है अगर तो वो, क्यूँ न दिखता है.....

सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २२/०२/२०१२

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