मैं न मंदिर में बसा हूँ…….
मैं न मंदिर में बसा हूँ, न किसी भी गिरजा में,
न ही
मस्जिद,
न ही बानी, न कदा-औ-कज़ा में,
न किसी मय
के पयाले में, मधुशाला में,
न किताबों
में रहा करता हूँ, न कोई शाला में,
मुझसे
मिलना हो तो इस क़ल्ब में रहम रखना,
रखना
होंठों पे हंसी, आँख को कुछ नम रखना,
किसी मासूम
की मुस्कान को, बनाये रखना,
इन अंधेरों
में भी इक आग, जलाये रखना,
और कुछ भी
मैं न चाहूँगा, न दरकार करूँगा,
तू जहाँ
चाहेगा,
आऊँगा, न इनकार करूँगा,
मैं रहूँगा
वहीँ चाहेगा, जहाँ तू रखना,
तेरी हर
बात सुनूँगा, रहूँगा तेरी रज़ा में......
मैं न मंदिर में बसा हूँ……….
सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी.... १२/०३/२०१२......... This post is available at Facebook also - https://www.facebook.com/photo.php?fbid=319331004790342&set=a.107118109344967.4473.100001403349849&type=3&theater
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