Thursday, April 12, 2012

एक लम्हा.... कुछ अपना सा.... .. By Suryadeep Ankit Tripathi


एक लम्हा.... कुछ अपना सा....

क्या यही सच था...
सच ही होगा...
बहुत कड़वा था...स्वाद में..
पर वो कहाँ है ....
जो कि गुजर गया...
तेरे-मेरे इस विवाद में....

वो लम्हा कहीं पे, बिखरा होगा
शीशे सा टूट-टूट के..
जरा ढूंढो उसे तुम, रोता होगा
किसी कौने में, फूट-फूट के...
तुम उसको अपनालो...
अपने गले लगा लो... 
रखलो सहेजे उसको, अपनी किसी ...याद में....

देखो तकिये के नीचे...सोया तो नहीं है...
ख्वाबों के जैसेखोया तो नहीं है.....
कोई करवट कहीं पे, उसने ली तो नहीं है..
कोई सिलवट चादर की, उसने सिली तो नहीं हैं..
उजले आँगन में देखो..
धुंधली शामों में देखो,
या छुपा होगा वो, रात की किसी.. बात में...
पर वो कहाँ है ....
जो कि गुजर गया...
तेरे-मेरे इस विवाद में....

सूर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १२/०४/२०१२  (This post could be seen at Facebook - https://www.facebook.com/photo.php?fbid=337264552996987&set=a.107118109344967.4473.100001403349849&type=3&theater


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