वो थी बरसात की, इक रात,
जहाँ हम-तुम थे....
होश जाने थे कहाँ -२,
और कहाँ हम गुम थे !! वो थी बरसात की.....
आधे भीगे थे, आधे सूखे थे,
जैसे अरमां कोई अधूरे से,,
खुद को सिमटाये, खुद में देर तलक -२,
थोड़े शर्माए, थोड़े चुप हम थे !! वो थी बरसात की......
थे सुलगते हुए अंगारे, कही थी रिमझिम,
कहीं बूंदों की वो टप-टप, कहीं पायल छम-छम,
मेरी बाँहों में तू थी सिमटी हुई - २
बंद पलकें थी, होंठ गुमसुम थे !! वो थी बरसात की......
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