मेरा आसमान....
इस क्षितिज पर नहीं.....
इससे ऊपर.... बहुत ऊपर
है मेरा आसमान..
जहाँ...
कभी-कभी मेरे पंख
मुझे उड़ाकर ले जाते हैं,
और मैं वहीँ रह जाता हूँ...
कुछ पलों से मिलने,
उनसे बातें करने..
और जहाँ....
सूर्य आँखों के सामने है...
सर पर नहीं....
चमकता है, पर चुभता नहीं...
जैसे पानी पर,.
उगते सूरज की परछाई..
और बादल; श्वेत, निर्दोष,
नवजात की तरह…
पंछी उड़ते हुए, कलरव करते,
उन्हीं बादलों में कभी खोते-मिलते,
हवाएं...कुछ ठहरी, कुछ चंचल
पर तेज नहीं... निश्छल,
तारे अनगिनत टिमटिमाते,
पर टूटते कोई नहीं,
शीतल चन्द्र बादलों से
खेलता आँख मिचोली,
संग तारे उसके हमजोली...
वहीँ चाँद के किनारे बनी,
पुरानी सी झोपडी और,
वही एक बूढी औरत,
जो तुम्हारे आसमान से,
चरखा चलाते दिखाई देती है.
और उसके पास बैठे,
वो ढेरों बच्चे, बड़े,
सुनते कहानियाँ, किस्से,
रोते - मुस्काते,
देखते तारे कैसे बनते.
पर....
यहाँ...केवल मैं ही हूँ..
तुम क्यों नहीं...?
क्या ये तुम्हारा आसमान नहीं हो सकता…?
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०९/०८/२०११
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