आज फिर इक गुनाह कर बैठे !
अपने ही दिल से, सवाल कर बैठे !!
दिल ने समझाया था, उल्फत न कर,
अपने ही दिल से, सवाल कर बैठे !!
दिल ने समझाया था, उल्फत न कर,
दिल लगाकर कमाल कर बैठे !!
अपने ही दिल से …….
इक तो वैसे ही ज़माने में, रंजिशें कम न थी
अपने ही दिल से …….
इक तो वैसे ही ज़माने में, रंजिशें कम न थी
दोस्ती दुश्मनों से की, बबाल कर बैठे !!
अपने ही दिल से …….
उनका मिलना तो एक ख्वाब ही था,
जाने हम क्या-क्या, ख्याल
कर बैठे !!
अपने ही दिल से …….
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०९/०९/२०११
i like ur simple poetry
ReplyDeletemay i know your name please ?
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