Thursday, September 8, 2011

चंद सवालात !!! (Chand Sawalaat) Suryadeep Ankit Tripathi - 08/09/2011


                           चंद सवालात !!!

क्यूँ सुलगता है वतन, और दहलती है जमीं
जर्रे-जर्रे पे क़यामत हैं, सुकूं पल को नहीं !!
टुकड़े अरमानों के, जज्बातों के, बिखरे-बिखरे,
कई मासूम सवालात, यु हीं बिखरे हैं यहीं !!
मेरे मालिक तेरी दुनियाँ, कभी ऐसी तो न थी,
क्या यही है, तेरी दुनियाँ, या भरम है ये कहीं !!
घर से निकले तो, चले खौफ का दामन पकडे
दिन ये दहशत में ही गुजरे, क्या ये, जीना हैं कहीं !!
क्या सवालों की भी कोई उम्र हुआ करती है,  
या जवाबों से रहनुमाओं की कोई, दुश्मनी तो नहीं !!
     सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०८/०९/२०११ 

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