आँगन में अपने प्रेम का, तुम दीप जलाये रखना जी,
आऊँगा इक दिन लौट के, तुम प्रीत जगाये रखना जी,
आँगन में अपने....
मंजिल मेरी दूर बहुत है, चलना मुझको है तनहा बहुत,
साथ तुम मेरे, चल न सकोगी, (राह में बिखरे हैं कांटे बहुत) -२
यादें तेरी मैं साथ रखूंगा, दिल में जैसे धड़कन जी,
आँगन में अपने....
आज जुदाई कहने भर की, कल से यादों की परछाईयां,
आज ये महफ़िल साथ है मेरे, (कल से मैं और तन्हाईयाँ) - २
कितना ही ग़म तुमको सताए, आँख नहीं नम करना जी..
आँगन में अपने....
पंछी, बादल और हवाएं, इनका तो कोई ठौर नहीं,
सन्देश तेरा जो मुझको बताये , (चंदा है कोई और नहीं) - २,
लिख कर प्रेम की पाती अपनी, चंदा से भिजवाना जी,
आँगन में अपने प्रेम का, तुम दीप जलाये रखना जी,
आऊँगा इक दिन लौट के, तुम प्रीत जगाये रखना जी,
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २३/०९/२०११
सुन्दर गीत....
ReplyDeleteधन्यवाद....सुषमा जी...
ReplyDeleteआपने अपने सुन्दर शब्दों की आहुति देकर लेखन के मेरे इस यज्ञ में एक पवित्र योगदान दिया है..!!