Monday, September 19, 2011

ग़रीब और ग़रीबी (Gareeb aur Gareebi) Suryadeep Ankit Tripathi


ग़रीब और ग़रीबी 
दिन रखे गिरवी, जमानत, उसकी साँसे होंगी,
खुद ही ढोया जिसे ताउम्र, वो गरीबी होगी !!
भूख के पेट को भरने को, न मयस्सर रोटी,
आज शायद उसे पानी की, जरूरत होगी !!
उम्र उम्मीद की बढती, उसकी गिरती जाती
कब्र अरमानों की उसने हर रोज़ बनाई होगी !!
रख के सिरहाने कोई बात, कई दर्द वो लेटा,
नींद शायद ही उसे बरसों से आई होगी !!
रोज़ बहता ही रहा घर, कभी आँसू कभी बारिश
जाने क्या सोच के छत उसने बनाई होगी !! 
वो गया कब इस जहाँ से किसे मालूम यहाँ,
रोई जो लाश पे आखिर वो भी तन्हाई होगी !! 
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - १९/०९/२०११ 

No comments:

Post a Comment