Wednesday, September 21, 2011

मेरा शहर......Mera Shahar (Suryadeep Ankit Tripathi)


मेरा शहर......   
कोई टूटी हुई पतंग जैसे,
मन है फिरता कोई मतंग जैसे !!
अजनबी शहर है, अनजान से चेहरे हैं यहाँ,
दूर मंजिल है कहीं, रास्ते हों तंग जैसे !!.... 
कोई टूटी हुई....
जिसको देखो यहाँ, सब भागते नजर आते
आज फिर छिड़ गई हो, कोई जंग जैसे !! 
कोई टूटी हुई....
चेहरे मायूस, लिए दर्द की सलवट कोई
जिंदगी घर से चली ओढ़ के घुटन जैसे !! 
कोई टूटी हुई....
दर्द का रिश्ता यहाँ दूर तक, नज़र में नहीं,
जिस्म का रिश्ता बसा हर जहन जैसे !!
कोई टूटी हुई....
फूल कागज़ के उगाते हैं, शहर के गुलशन
खुशबुएँ रोज़ ही बिकती हैं, एक बदन जैसे !!
कोई टूटी हुई पतंग जैसे,
मन है फिरता कोई मतंग जैसे !!
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी -२१/०९/२०११  

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