Friday, December 3, 2010

ऐसा क्यूँ होता है ?


ऐसा क्यूँ होता है,
जब तुम
रहती हो, नज़रों के सामने, 
रहती है, समस्त प्रकृति में बहार,
जैसे उतर आया हो,
ऋतुराज वसंत इस धरा पर,
और अन्यत्र 
जहाँ नहीं हो तुम,
त्रीव (तीक्ष्ण) उष्ण है वहाँ,
जैसे हो महिना ग्रीष्म जेठ (ज्येष्ठ) का,
सच जहाँ तुम हो, है वहाँ बहार.
आज ऐसी ही एक सुहानी सुबह है,
नहीं हो तुम साथ, इसलिए कुछ उदास है,
शीत के हैं दिन, समस्त प्रकृति है ठिठुर रही,
तुम्हारे न आने से, धूप भी निष्ठुर जाती रही,
बादलों ने भी छिपा लिया है, अपने आँचल में हेमराज को,
क्यूंकि नहीं निकला है, आज मेरा चाँद भी मेरे आँगन में..
सच जहाँ तुम हो, है वहाँ बहार.
सुर्यदीप "अंकित" 

No comments:

Post a Comment