जिन्दगी मेरी मुझे, आज फिर से रास आई,
तुझसे मिलने की घड़ी, जिस पल मेरे करीब आई,
न तो शिकवा रहा किसी से अब, न तो कोई गिला ज़माने से,
हो गया दूर सब से ए हमदम, दो घड़ी तू जो मेरे पास आई..
तेरी जुल्फों के साये में बसर है हर शाम मेरी,
दीद रूखसार का तेरे लेके, हर एक सहर आई..
धड़कने से मेरे दिल का, मुझे ये इल्म हुआ,
हूँ में जिंदा अभी, तेरी बातें भी इसे रास आई..
कल तलक मुझसे ख़फा थीं, ये बहारें कबसे,
खिल उठा घर मेरा, फिर से जो तू इधर आई,
जिन्दगी मेरी मुझे, आज फिर से रास आई!!
सुर्यदीप "अंकित" - १६/१२/२०१०
कुछ पल, कुछ यादें जो हर वक़्त बसर करती है मेरे घर में मेरे साथ..
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