Sunday, December 5, 2010

नज़म

नज़म 
एक बार जो नज़र मिली थी उनसे,
फिर वो ज़माने के हर नज़ारे में थे,,
कल तलक जो थे, सिर्फ नज़रों में,
आज वो जद्दो जहन समाये थे
रहा करते थे कल तलक जो गुमशुदा,
हर एक की जुबां पे, आज वो फ़साना थे,
कितने ही आशिकों का, नाम होंठों पे था उनका,
हम तो बस गरीब, उनके बेगानों में थे,
न पूछ कि कितने सितम दिए हैं जालिम ने,
हम तो बस मगशूल सितम उठाने में थे..
सुर्यदीप "अंकित" - ०२/०२/१९९४ 

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