Wednesday, January 19, 2011

KUCH RISHTEY.....कुछ रिश्ते..

रिश्ते !!
रिश्ते इस दुनियाँ में, कुछ कम ही निभा पाते हैं, 
कहीं ताउम्र चलें, और कहीं, शाम को ही, ढल जाते हैं !!
माँ के आँचल से, लिपटकर, नहीं रोया कब से,  
रोके तनहा किसी कोने में ये, अरमान निकल जाते हैं !! 
(बिन माँ के बच्चे की व्यथा) 
बाप ने कब से नहीं रक्खा है, सर पे हाथ मेरे, 
जख्म हाथों के मैं, कहीं देख न लूँ , वो डर जाते है !!
(ये एक ऐसी विडम्बना है जहाँ लोग आपको चाहते हुए भी प्यार नहीं कर सकते, या उसे प्रदर्शित नहीं कर सकते)
उसके दामन में जो,  कुछ देर रख दूं, सर अपना, 
दिल से उठता है धुंआ, लोगों के, वो जल जाते हैं !!
(और कुछ पल जब मैं सुकूं के चाहता हूँ, तब लोगों की नाराजगी, उनकी जलन या पीड़ा मुझे उस सुकून से महरूम कर देती है)
प्यार बच्चों से करूँ, तो करूँ, किस पल आखिर,
सुबह मैं मिलता नहीं, रात को वो, सो जाते हैं !!  
और एक चुभन तब होती है जब मैं अपने बच्चों के साथ नहीं हो पाता,या उनके साथ खेल नहीं पाता,
 क्योंकि वो लम्हे जब मैं उनके साथ खेल सकता हूँ, प्यार कर सकता हूँ, वो लम्हे या वो वक़्त मैंने किसी और के पास गिरवी रखे हैं)
 
है अज़ब दुनियाँ का दस्तूर, मेरे, ख्वाबों से परे, 
आँख खुलते ही, अंधरे भी, नज़र  आ जाते हैं !!   
(और कुछ रिश्ते, जो लोग सिर्फ स्वार्थ के लिए बनाते हैं, बहुत दुःख होता है जब उनकी असलियत सामने आ जाती है)
और एक रिश्ता है, दुनियाँ में, बड़ा ही रंगीं,
दोस्ती नाम है उसका, सब रंग उसमें, समां जाते हैं !! 
(और ये रिश्ता जो कि हर मज़हब में, हर धर्म में, हर रंग में दिखाई देता है, दोस्ती का रिश्ता, इसमें कोई स्वार्थ नहीं होता, कभी ये माँ-बाप का प्यार देता है, कभी भाई-बहन और कभी किसी चाहत का, सच कहा जाये तो ये रिश्ता ही सब लोगों को कोई और रिश्ते बनाने को प्रेरित करता है, और यही रिश्ता भाई-बहनों के बीच होता है) 
सुर्यदीप "अंकित" - १९/०१/२०११ 

3 comments:

  1. सर पर हाथ न रखने का कारण बहुत कुछ कह जाता है....

    मार्मिक रचना.

    साधुवाद.

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  2. Thanks...a lot Harshvardhan ji..
    also...a personal thank to understanding the line...as always..

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  3. बहुत ही उत्तम प्रस्तुति.
    अधिक शब्द इसका महत्व ही कम करेंगे ।

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