Thursday, April 7, 2011

कि ख़त्म भ्रष्टाचार हो..!


कि ख़त्म भ्रष्टाचार हो..! 
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ०७/०४/२०११ 
पुकार हो, प्रहार हो
जन-शक्ति एकाकार हो
दुत्कार हो, ललकार हो
एक युद्ध अबकी बार हो !!                            
1. खोल दो ये खिड़कियाँ
तोड़ तो ये चुप्पियाँ,
पोछ दो ये सिसकियाँ,
कि उठ खड़े हज़ार हो !
कि उठ खड़े हज़ार हो !
2. प्रचंड एक नाद हो
एक ही आवाज़ हो
कल नहीं ये आज हो
शपथ ये अबकी बार हो  !
शपथ ये अबकी बार हो !
3. अब देश अपना मान लो
सीना अपना तान लो
तुम छीन अपना मान लो
कि ख़त्म भ्रष्टाचार हो !   
कि ख़त्म भ्रष्टाचार हो ! 
पुकार हो, प्रहार हो
जन-शक्ति एकाकार हो
दुत्कार हो, ललकार हो
एक युद्ध अबकी बार हो !! 

4 comments:

  1. अच्छी कविता !
    भ्रष्टाचार ख़त्म होना ही चाहिए !

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  2. bhrastachar ke virudh aam jan ko ekjut hokar uth khade hone ka vqkt aa aa gaya hai..
    sachmuch yah aaj ka mahayudh hai... bahut achha udghosh...ham sabhi is muhim mein samil hain....aapka dhanyavaad

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