छार बनी ये काया बन्दे.....
छार बनी ये काया बन्दे,
छार ही एक दिन होनी रे...
जीवन सार समझ मन मूरख,
काहे, मति भई तेरी दीवानी रे....छार बनी....
भर-भर गठरी, ठाठ सजाये,
तेरा-मेरा कह, महल बसाये,
गठरी देह सजी काठन पर,
संग, धन की गठरिया न जानी रे.. छार बनी...
भोग-बिलस में जीवन बीता,
ज्ञान कलश अब भी है रीता,
भूला राम नाम अमृत सुख,
तुने, बात न इतनी जानी रे...... छार बनी ...
उसका नाम हरे हर दुःख को,
तिसना रहे न बाकी रे,
ये जीवन तो आना-जाना,
सुधि, उसकी न व्यर्थ ये जानी रे...
छार बनी ये काया बन्दे,
छार ही एक दिन होनी रे...
जीवन सार समझ मन मूरख,
काहे, मति भई तेरी दीवानी रे....
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ३०/०४/२०११
जीवन के सार की उत्तम प्रस्तुति...
ReplyDeleteटोपी पहनाने की कला...
गर भला किसी का कर ना सको तो...
Bahut Bahut...Dhanyavaad....Susheel ji..
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