कलयुग परचम लहराएगा....
जब दूध को तरसेगा बचपन, मदिरा घर पर आ जाएगी,
जब तेरे खून पसीने की,
दौलत तुझसे छिन जायेगी,
जब अन्धकार होगा घर भीतर,
घर का दीपक बुझ जाएगा,
तब सोच तू लेना ए मानव, कलयुग परचम लहराएगा....
जब कंठ तेरे पानी को तरसे,
आँखों का जल भी आ सूखे,
खेतों के आँचल भी हों फीके,
धरा का सीना पल-पल टूटे,
जब वक़्त वहीँ रुक जाएगा,
तब सोच तू लेना ए मानव, कलयुग परचम लहराएगा ....
जब सत्य पे होगी जीत अर्थ की,
जब काम, क्रोध हर्षायेगा,
छुप धर्म रहेगा, घर भीतर चुप,
अधर्म ठहाके लगाएगा,
जब दो कौड़ी के बदले मानव,
प्राण कोई हर ले जाएगा,
तब सोच तू लेना ए मानव, कलयुग परचम लहराएगा ....
जब धर्मग्रन्थ का मान न होगा,
होगी आडंबर की पूछ,
संत, असंत के संग रहेगा,
रावण बन लेगा वो लूट,
जब झूट के हाथों, रोज़ यहाँ पे,
सच को यूँ मारा जाएगा..
तब सोच तू लेना ए मानव, कलयुग परचम लहराएगा ....
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - २३/१०/२०१०
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ReplyDeleteबेहतरीन प्रासंगिक भाव लिए रचना.... सच को उकेरती पंक्तियाँ
ReplyDeleteThanks... Monika ji..
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