Sunday, December 5, 2010

भूत वर्त भवि !!!

भूत वर्त भवि !!!

अतीत की गहराइयों में
झांककर 
जब भी मैंने, मुझे देखा 
तब-तब खुद को
बस तन्हाइयों में पाया है
एक साया हुआ 
करता था,
वक़्त की धूप का हमसफ़र था
हुआ तीक्ष्ण अँधेरा 
तब साया चले गया था 
एक सर्द सा मातम छाया है,
घने तिमिर में घिरा हूँ,
हाथ को हाथ न सूझे ,
आज फिर वही साया 
अँधेरे से उजाले में
ले आया है,
बस सावन ही सावन 
हुआ करता है
अब ज़िन्दगी में
पतझड़ का मौसम
बहारों से डर सा गया है
सुर्यदीप "अंकित" ०३/०६/१९९४ 

3 comments:

  1. खबरों की दुनियाँ में आपका आगमन हुआ , आभार । एक और अच्छी पोस्ट के लिए बधाई ।

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  2. आप सभी मित्रजनों को धन्यवाद !!!

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