Monday, December 6, 2010

अबस ये ज़िन्दगी मेरी (I feel Alone)

*अबस ये ज़िन्दगी मेरी, है अनकही सी दास्ताँ,
है ख़लिश हर घडी दिल में, ना संग कोई आश्ना,
हैं ख्याल बंद कफ़स में, है कलम गर्द में मेरी,
है कई बेरंग से कागज़, खफ़ा-खफ़ा सा जहाँ....
है ज़दा लम्हे कई सारे, है ये ज़ाबित सा ख़ुदा,
हरे हैं ज़ख्म अभी तक, नहीं मिटे हैं निशां.... 
नहीं है दाद किसी दानिश की, न ही नेकी का चलन,
नाफ़हम हमको दिया ठहरा, और बंद करदी ये जुबां

सुर्यदीप "अंकित" - ६/१२/२०१०





*अबस - बेकार, मूल्यहीन . खलिश - चुभन, दर्द  . आश्ना - जानकार, परिचित, मित्र . कफ़स - पिंजरा
ज़दा - चोटिल, चोटग्रस्त. जाबित - कठोर, बेरहम . दाद - प्रसंसा . दानिश - जानकार, बुद्धिमान
नाफ़हम - नासमझ, बेअक्ल

I feel Alone

3 comments:

  1. अकेले मत रहिये । वैसे भी पर्यटन में अकेलापन कहाँ रह पाता होगा.
    मेरी नई पोस्ट 'भ्रष्टाचार पर सशक्त प्रहार' पर आपके सार्थक विचारों की प्रतिक्षा है...
    www.najariya.blogspot.com नजरिया

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