१. बिखर रही है जमीं, बिखर रहा है चमन !
नहीं हैं फूलों से चेहरे, नहीं है तन पे वसन !!
है पेट पीठ से टकराता हुआ, है प्यास लब पे, धंसे हुए हैं नयन !
बिखर रही है जमीं, बिखर रहा है चमन !
२. है दर्द दिल मैं, कई सिलवटें हैं माथे पर,
नहीं है जान बदन मैं, गए हैं थक से कदम !!
बिखर रही है जमीं, बिखर रहा है चमन !
३. उसे ही बेच दिया माँ ने, जो था आँख का तारा !
नहीं था उसके सिवा कोई, जहाँ मैं प्यारा !!
थी फिक्र उसकी भी उसको, नहीं थी भूख सहन !!
बिखर रही है जमीं, बिखर रहा है चमन !
४. रसूख वालो जरा, इनपे भी इनायत कर दो !
है इनका हक़ इन्हें, थोड़ी सी मुहब्बत दे दो !!
किसी को फिक्र नहीं है, नहीं किसी को रहम !!!
बिखर रही है जमीं, बिखर रहा है चमन !
सुर्यदीप "अंकित" - २४/०९/२०१०
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