Tuesday, October 19, 2010

बिखरी जुल्फों को तेरी.........

बिखरी जुल्फों को तेरी, आज संवारूँ कैसे,
यूँ दिखाई दी है, माथे पे शिकन, 
वो शिकन रुख से, तेरे आज, हटाऊँ कैसे !!
सुर्ख लब हैं, या हैं कोई कमल,
इन गुलों को, अपने गुलशन में, खिलाऊँ कैसे !!
हैं नशा सा तुम्हारी आखों में, 
तेरी पलकों को, मेरा जाम, बनाऊं कैसे !!
जिसके चेहरे से, है रोशन ये जहाँ, 
वो उजाला मेरी, तकदीर में लाऊँ कैसे !!
दिल तो करता है, मोहोब्बत तुझसे, 
हाले-दिल अपना, सुनाऊँ तो, सुनाऊँ कैसे !!
लगने लगती है, हर एक साँस भी, अधूरी सी, 
तेरी साँसों को, मेरी साँस,  बनाऊँ कैसे !!
ख़त्म सी होने लगी हैं, धुन मेरे गीतों से,
तेरी धड़कन मेरे गीतों में, सजाऊँ कैसे !!
है अँधेरा कई लम्हों से, मेरे घर में यूँ ही, 
नाम की तेरे शमा, घर में, जलाऊं कैसे !!
बिखरी जुल्फों को तेरी, आज संवारूँ कैसे,
सुर्यदीप "अंकित" - १२/१०/२०१० 


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