खुश ना होगी, मुझसे बिछड़ कर, ये मुझको मालूम है,
याद मुझे तो करती होगी, ये मुझको मालूम है,
वो नदिया का तीर है तनहा, है वीरां गुल और गुलशन,
सारा आलम चुप सा होगा, ये मुझको मालूम है,
ख़त वो पुराने पढ़तीं होगी, तस्वीरों को ढूढती होंगी,
सोच में मेरे ही गुम होगी, ये मुझको मालूम है,
पलकें होंगी भीगी-भीगी, होगा बोझिल-बोझिल मन,
होंठ सिले से होंगे हरदम, ये मुझको मालूम है,
ऊपर वाले ने क्यों लिख दी, ये बैचेनी, तन्हाई
शिकवा उससे करती होगी, ये मुझको मालूम है,
आइना जब देखती होंगी, होगी कुछ हैरानी सी,
अनजानी सी सूरत होगी, ये मुझको मालूम है,
खुश ना होगी, मुझसे बिछड़ कर, ये मुझको मालूम है,
याद मुझे तो करती होगी, ये मुझको मालूम है,
सुर्यदीप "अंकित" - २७/१०/२०१०
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