Friday, April 29, 2011

Chhar Bani Ye Kaaya Bande...छार बनी ये काया बन्दे...


छार बनी ये काया बन्दे.....

छार बनी ये काया बन्दे
छार ही एक दिन होनी रे...
जीवन सार समझ मन मूरख
काहे, मति भई तेरी दीवानी रे....छार बनी....

भर-भर गठरी, ठाठ सजाये
तेरा-मेरा कह, महल बसाये
गठरी देह सजी काठन पर
संग, धन की गठरिया न जानी रे.. छार बनी...

भोग-बिलस में जीवन बीता
ज्ञान कलश अब भी है रीता
भूला राम नाम अमृत सुख
तुने, बात न इतनी जानी रे...... छार बनी ...

उसका नाम हरे हर दुःख को
तिसना रहे न बाकी रे
ये जीवन तो आना-जाना
सुधि, उसकी न व्यर्थ ये जानी रे... 
छार बनी ये काया बन्दे
छार ही एक दिन होनी रे...
जीवन सार समझ मन मूरख
काहे, मति भई तेरी दीवानी रे.... 
सुर्यदीप अंकित त्रिपाठी - ३०/०४/२०११ 

2 comments: