अज़ाबे-दिल कभी गैरों से, मुख़ातिब है नहीं,
है अरज़ यार से वही आगोश में अपने लेले !!
हूँ मैं आजिज़, हूँ मैं ग़मदीदा कई लम्हों से,
एक छोटी सी नींद को, दामन वो अपना देदे, !!
है यही ज़ज्बा, यही आरज़ू इन आँखों की,
बंद होने से पहले, दीदार-ए-सूरत देदे !!
मैंने करदी है, नाम उसके ये ज़िन्दगी अपनी,
है यही मेरी ख्वाइश, वो मोहोब्बत करदे!!
अब नहीं जाता सहा, दर्द जो ज़माने ने दिए,
ए खुदा, बख्श मुझे, मौत का मरहम करदे !!
सुर्यदीप "अंकित" - १५/११/२०१०
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