Sunday, November 28, 2010

निकले वो पराये.....

समझे थे जिनको, अपना हम, निकले वो पराये,
धूप ही धूप है, अब जिंदगी में, दूर हैं जुल्फों के साए,
क्या थी ख़ता, मेरी मुझको बताना
सज़ा ये मिली है, मुझे किसलिए
हम तो जिए थे, तेरे लिए ही, और हम मरेंगे तेरे लिए
समझे थे जिनको, अपना हम.....

ए आसमां तुम कुछ तो बोलो, राज दिल के आज खोलो,
चाँद भी बदली में छुपा है, निकले नहीं हैं तारे,
निकले वो पराये.....
समझे थे जिनको, अपना हम.....

ए गुलशन, तुम कुछ तो बोलो, राज चमन के आज खोलो,
कलियाँ भी थी रो पड़ी, फूल भी है मुरझाये
निकले वो पराये.....
समझे थे जिनको, अपना हम.....

ए सितारों तुम कुछ तो बोलो, राज गगन के आज खोलो,
चाँद में कितने दाग हैं बोलो, टूटे हैं कितने तारे
निकले वो पराये.....
समझे थे जिनको, अपना हम.....
सुर्यदीप "अंकित" - ०१/०२/१९९४ 

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