मेरी जिंदगी !!
कुछ मौन, कुछ खोई सी है, मेरी ज़िन्दगी,
है अन्दर से प्रस्तर सी निर्जीव, उसमें पर है तो ज़िन्दगी,
लाखों झंझावात हैं आये, बिखरी है हर ख़ुशी,
पर शुक्र है कि अब तक न छोड़ी है ज़िन्दगी,
यही तो है ज़िन्दगी,
कुछ जलन सी है, उन मिर्चियों कि डाली में
आज कुछ अधिक ही तीखी है,
आमों की टोकरी भी, परिवर्तन है ज़िन्दगी,
शायद ये दिन ही हैं, ऐसे, और ऐसी ही ये ज़िन्दगी
कुछ खामोश, कुछ खोई सी है, मेरी ज़िन्दगी
जीने को तो बहुत लोग, जिया करते हैं ज़िन्दगी
पर कुछ ही हैं ऐसे, जो जिया करते हैं दूजों की ज़िन्दगी,
कुछ भी कहो...बड़ी सुहानी है ज़िन्दगी
सुर्यदीप "अंकित" २०/०५/१९९३
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