पथ गमन का था बहुत दूर,
पर मुझे जाना था जरूर,
जाना था जरूर, पर जी नहीं चाहता था,
ये थी मेरी विवशता !!
सजल नेत्र, हिय में रोकने की चाह
निकल उठी थे बरबस आह
हाथ में टीका, पर मन भारी था,
ये थी उसकी विवशता !!
हा: तत आया क्षण विदा का,
हन्त, करुण रस प्रदर्शित करता,
हर कोई स्नेह मुझ पे बरसाता था,
ये थी उन सबकी विवशता !!
सब एक दुसरे से थे बिछड़ रहे,
पर एक दुसरे को शुभकामनायें देते हुए,
हर कोई साथ में आना चाहता था,
ये थी हम सब की विवशता .
सुर्यदीप "अंकित" - १६/०३/१९९३
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