इल्तजा !!!
प्यार की इल्तजा है, बस प्यार किया कीजे,
गर ठोकरें ही देनी हो, "अंकित" को,
वो भी प्यार से दिया कीजे !!
हमसफ़र हैं राहे-ज़िन्दगी के दर्दो ग़म,
कुछ पल तो मुस्कुरा लीजे,
ख़ुशी तो मिल बांटा करते हो,
कुछ दर्द भी बांटा कीजे !!
ठुकरा के हर रस्म दुनिया की,
तुम भी मुस्कुरा लीजे,
पर राहे-इश्क में चलकर,
इश्क को रुसवा तो न कीजे,
मंदिर भी जाके, मस्जिद भी जाके,
सर झुका लिया कीजे,
ईदो-दीवाली इक साथ मनाकर,
नाकाम इरादे दुश्मन कीजे,
कोई गर पूछे नामो-मज़हब,
तो बस इतना किया कीजे,
पता अपना नहीं, हिंदो-वफ़ा का दीजे...
सुर्यदीप "अंकित" - ०१/०९/१९९३
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