है एक अभिलाषा !!!
है एक अभिलाषा,
तुम्हें दोस्त बनाने की,
सन्यस्त -सम्पूर्ण कर देने की निज को,
चाह में सर्वस्व लुटा देने की,
है एक अभिलाषा .
पर मन है अशांत, यह सोचकर,
क्या है एक अभिलाषा, तुम्हारी भी,
एक दोस्त बनाने की ?
क्या है अभिलाषा तुम्हारी भी,
समर्पित,
संपूर्ण कर देने की निज को, उस पर ?
या चाह में सर्वस्व लुटा देने की,
हाँ शायद यही है तुम्हारी,
एक ही अभिलाषा ..
मौन-मूक रहना, पलकें झुकाना,
जरा मुस्कुराना, जरा खिलखिलाना,
स्पर्श से यों उसके,
फूलों सा सिमट जाना,
अपनी ही अदाओं से दीवाना बनाना
है यही बस तुम्हारा फ़साना पुराना
क्या अब भी उसके मन में,
नहीं होगी
एक ही अभिलाषा
उसे दोस्त बनाने की...
सुर्यदीप "अंकित" - ११/१२/१९९३
No comments:
Post a Comment