स्वप्न प्रिये !!!
स्वप्न प्रिये !
अतिश्योक्ति नहीं, सत्य है ये,
कि तुम, और सिर्फ तुम
ही मेरी स्वप्न प्रिये हो !!
अहसास होगा तुम्हें जब रखोगे,
निज ह्रदय पर कर अपना,
पूछोगे अपने मन का सच-झूठ
प्रति उत्तर कहेगा हृदय तुम्हारा,
कि तुम, और सिर्फ तुम,
ही उसकी स्वप्न प्रिये हो !!
अगर हृदय तुम्हारा, साथ न दे तुम्हारा,
तो पूछ लेना, अपने आँचल से,
लहराएगा, बलखायेगा,
संग हवा के झूमता, यही कहता जायेगा,
कि तुम, और सिर्फ तुम,
ही उसकी स्वप्न प्रिये हो !!
अगर आँचल न लहराए तुम्हारा,
तो एक कहा मानना मेरा,
अपने चंचल नेत्रों से पूछ लेना,
अगर बह निकले अविरल अश्रु तुम्हारे तो,
तुम, और सिर्फ तुम, ही मेरी स्वप्न प्रिये हो !!
अगर न निकले अश्रु, तुम्हारे चपल-चक्षु से,
तो उतार कर आँचल तुम्हारे अंग का,
कफ़न मेरी लाश पे बिछा देना,
फिर कह उठेगी, चिता ज्वाला,
प्रकृति में फैला करुण संगीत निराला,
कि तुम, और सिर्फ तुम,
ही मेरी स्वप्न प्रिये थी !!
बस तुम ही मेरी स्वप्न प्रिये थी,
हाँ तुम ही मेरी स्वप्न प्रिये थी ...
सुर्यदीप "अंकित" - १६/०१/१९९४
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